अलवर

ऐसी हो रही है बरसात, लू के थपेड़ों दे रही मात, छू मंतर तापघात..इस खबर का जरूर पढ़े

अलवर. मौसम के मिजाज के आगे इस बार गर्मी मार्च, अप्रेल व मई में अपने तीखे तेवर नहीं दिखा पाई। गत वर्ष लू के थपेड़ों से गर्मी तेज थी। इस बार हर सप्ताह बरसात हो रही है। ऐसे में गर्मी जनित बीमारियो, लू-तापघात के मरीजों की संख्या कम है। गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष मार्च से मई तक के गर्मी के सीजन में ओपीडी-इनडोर भी कम रहा है।

अलवरMay 30, 2023 / 04:27 pm

Ramkaran Katariya

Medical Department and Medical Facilities

अलवर. मालाखेड़ा. मौसम में हो रहे बदलाव को लेकर आउटडोर 600 से 500 आ गया। फिर भी उल्टी, दस्त, बुखार, पेट दर्द के मरीज अधिक आ रहे हैं। गंभीर बीमार को वार्ड में भर्ती कर उपचार किया जाता है। ऐसे में औसतन एक दर्जन महिला पुरुष मरीज वार्ड में भर्ती रहते हैं। साथ ही आउटडोर बढ़ते तापमान के दौरान 600 के करीब था, जहां अब बारिश होने के बाद 500 के करीब रह गया। मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के तहत 280 से अधिक प्रकार की दवा दी जाती है। 30 प्रकार से अधिक जांच की जाती है। हॉस्पिटल में ही नेत्र रोग, दंत रोग, शिशु रोग के विशेषज्ञ हैं।
सर्जन का पद स्वीकृत है, लेकिन काफी दिनों से रिक्त है। इसके चलते छोटे-मोटे ऑपरेशन, सडक़ दुर्घटना में घायल को अलवर ही जाना पड़ता है। शिशु रोग विशेषज्ञ कैलाश चंद सैनी का कहना है इन दिनों बच्चों में डायरिया बढ़ रहा है। वही डॉक्टर मनोहर लाल का कहना है इन दिनों उल्टी, दस्त, बुखार पेट दर्द के रोगी आ रहे हैं। जो अधिक दिन से बीमार हैं। उन्हें वार्ड में भर्ती कर उपचार किया जा रहा है। मालाखेड़ा प्रधान वीरवती का कहना है सीएचसी मालाखेड़ा में रंगीन डिजिटल एक्स-रे तथा सोनोग्राफी का होना जरूरी है। अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ व महिला चिकित्सक हैं, वह सोनोग्राफी की जांच लिखती है। इसके लिए मरीजों को 900 रुपए के करीब प्रति सोनोग्राफी के देने पड़ते हैं। रंगीन डिजिटल एक्स-रे की भी व्यवस्था नहीं है। खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी मनीष कुमार का कहना है कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से उपलब्ध सभी सेवाएं निशुल्क रोगियों के लिए उपलब्ध है। उधर समाजसेवी लालाराम सैनी, केदार शर्मा, राजेंद्र व्यास, राजेंद्र सिंह जादौन ने बताया कि अस्पताल में एक्स-रे, रंगीन सोनोग्राफी की मशीन होना जरूरी है।
पीएचसी के पुराने भवन में संचालित है सीएचसी
नारायणपुर. कस्बे के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र कहने का ही है, अभी तक यह सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पुराने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के भवन में ही संचालित है। इस बार मई माह बीतने को है, लेकिन मौसम के मेहरबान होने के कारण गर्मी का लोगों को अहसास नहीं हुआ है। नारायणपुर सीएचसी के चिकित्सा प्रभारी डॉ. सुरेश कुमार मीणा ने बताया कि इस बार मौसम अनुकूल रहने के कारण बहुत सुकून महसूस हुआ है। गर्मी का अहसास कम होने से चिकित्सालय में सभी प्रकार के मरीज दिखाने आते हैं। चिकित्सालय में नर्सिंग स्टाफ की कमी होने से परेशानी उठानी पड़ रही है। मरीजों को जांच व दवाइयां पर्याप्त मात्रा है, कोई कमी नहीं है। ओपीडी में 550 मरीज अपनी बीमारी का इलाज कराने आते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा कमी भवन की खलती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के पुराने भवन में ही सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र चल रहा है। कहने को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र है, लेकिन भवन जर्जर हालत में पुराने भवन में संचालित है।
लोग मौसमी बीमारियों की चपेट में कम
बहरोड़. इन दिनों मौसम में आ रहे लगातार बदलाव के साथ ही लोग कम मौसमी बीमारियों की चपेट में आ रहे है।जिला अस्पताल में इन दिनों सामान्य वार्ड व मेडिकल वार्ड में भर्ती मरीजों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में कमी देखने को मिल रही है। जिला अस्पताल के चिकित्सक ने बताया कि पिछले वर्ष जहां अस्पताल में रोजाना गर्मी के दिनों में मरीजों को भर्ती करना पड़ रहा था तो इस बार सामान्य व मेडिकल वार्ड में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में कमी आई है।
ओपीडी में पहुंच रहे पन्द्रह सौ मरीज
जिला अस्पताल की ओपीडी में इन दिनों रोजाना करीब पंद्रह सौ मरीज चिकित्सकों को दिखाने के लिए पहुंच रहे है। जबकि गर्मी जनित बीमारियों के मरीजों की संख्या पिछले वर्ष से कम आ रही है। जबकि पिछले वर्ष अस्पताल की ओपीडी बारह सौ मरीज रोजाना थी।
ओपीडी में बढ़ोतरी आईपीडी में कमी
जिला अस्पताल में इस वर्ष ओपीडी में जरूर बढ़ोतरी हुई है लेकिन आईपीडी मरीजों की संख्या में कमी आई है।जिला अस्पताल के चिकित्सक ने बताया कि पिछले वर्ष अप्रेल से जून माह तक एक हजार से अधिक मरीज भर्ती हुए थेए लेकिन इस बार इसके कमी देखने को मिली है। क्योंकि इन दिनों मौसम में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है।जिससे तेज गर्मी व लू नहीं चलने के कारण भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में कमी आई है। डॉ. सत्यवीर यादव, पीएमओ जिला अस्पताल बहरोड़ का कहना है कि अस्पताल में मौसम में आए बदलाव के कारण भर्ती मरीजों की संख्या में कमी आई है। पिछले वर्ष मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन इस बार ओपीडी में रोजाना पन्द्रह सौ के करीब मरीज दिखाने के लिए आ रहे है।

ट्रोमा सेंटर में गंभीर घायल को तुरंत समुचित उपचार
अलवर के ट्रोमा सेंटर में गंभीर घायल को तुरंत समुचित उपचार मुहैया कराने के लिए हड्डी रोग विशेषज्ञ, जनरल सर्जरी, मेडिसन, न्यूरोसर्जरी व ऐनेस्थीसिया के एक-एक विशेषज्ञ होने चाहिए। वहीं, अलवर के सामान्य चिकित्सालय का ट्रोमा सेंटर केवल अस्पताल की इमरजेंसी सेवाओं के भरोसे ही संचालित है। यहां विशेषज्ञ चिकित्सक तो दूर एक सामान्य चिकित्सक की भी स्थायी नियुक्ति नहीं है। ऐसे में यह केवल प्राथमिक उपचार का केन्द्र बना हुआ है।
नर्सिंग स्टाफ की भी कमी
ट्रोमा सेंटर में आने वाले घायल मरीजों की पूरी जिम्मेदारी केवल 6 नर्सिंग कर्मियों के भरोसे है। जो 3 पारियों में घायल मरीजों को सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं ऑर्थोपेडिक वार्ड के भर्ती मरीजों की देखरेख की भी इन्हीं नर्सिंग कर्मियों की जिम्मेदारी है। जबकि करीब 10 साल पहले ट्रोमा सेंटर के लिए 10 नर्सिंग कर्मियों व ऑर्थोपेडिक वार्ड के लिए 5 नर्सिंग कर्मियों के पद स्वीकृत किए गए थे। इसके साथ ही महिला स्टॉफ नहीं होने से यहां उपचार के लिए आने वाली महिलाओं को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

एक दशक बाद भी नहीं सुविधाओं का विस्तार
साल 2013 में बने सामान्य चिकित्सालय के ट्रोमा सेंटर में करीब 10 साल बाद भी सुविधाओं का विस्तार नहीं हो सका है। खासबात यह भी है कि जिला मुख्यालय पर स्थित होने के बाद भी यहां स्थायी चिकित्सक की भी नियुक्ति नहीं है। इस कारण इमरजेंसी के दौरान अस्पताल से कॉल पर चिकित्सक बुलाया जाता है। ऐसे में कई बार चिकित्सक के आने में देरी होने पर मरीज की जान पर बन आती है।
विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव
जिला अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में गंभीर घायल मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद यहां से रैफर कर दिया जाता है। चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में सामान्य चिकित्सालय के ट्रोमा सेंटर की आईपीडी में 3344, ओपीडी में 8035 एवं सडक़ दुर्घटनाओं में घायल हुए कुल 1710 मरीज आए। इसमें से 12 लोगों की मौत हो गई। जबकि 886 मरीजों को जयपुर रैफर कर दिया गया। इसी प्रकार अप्रेल-2023 में ट्रोमा सेंटर में कुल 1052 घायल मरीज आए। इनमें ओपीडी के 834 व भर्ती मरीजों की संख्या 218 रही। जबकि सिर की चोट व हड्डियों के कॉम्पलिकेशन संबंधी 63 घायल मरीजों को रैफर किया गया।
वहीं न्यूरो सर्जन के अभाव में सिर में गंभीर चोट के घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद परिजन ट्रोमा सेंटर से शहर के निजी अस्पतालों में उपचार के लिए ले जाते हैं। ऐसे केसों को अस्पताल की ओर से रैफर किए गए केसों में नहीं शामिल किया जाता है। जानकारों के अनुसार यदि ऐसे केसों को भी शामिल किया जाए तो रैफर का आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है। डॉ. सुनील चौहान, पीएमओ, सामान्य अस्पताल का कहना है कि ट्रोमा सेंटर में स्वीकृत से अधिक बेड लगाए हुए हैं। वहीं, अस्पताल में स्टाफ की कमी है। उपलब्ध संसाधनों के आधार पर बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास कर रहे हैं।

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