अलवर

पेंशनर रजाई में, दवा खपाने का कई करोड़ का खेल

अलवर जिले में बीमारी के सीजन में 65 लाख की दवा, हैल्दी सीजन में 160 लाख की दवा खपा दी

अलवरDec 23, 2019 / 10:03 pm

Dharmendra Yadav

पेंशनर रजाई में, दवा खपाने का कई करोड़ का खेल

अलवर.
जिले में करीब 22 हजार पेंशनर के हक का कई करोड़ रुपया हर साल फॉर्मासिस्ट दवा के नाम पर जीम जाते हैं। पेंशनर की दवाओं पर महीने वार खर्च होने राशि ही इस जालसाजी का बड़ा सबूत है। डॉक्टरों के अनुसार दिसम्बर, जनवरी, फरवरी व मार्च माह हैल्दी सीजन होता है। जिसमें बीमारी अन्य महीनों की तुलना में बहुत कम होती है। खान-पान अच्छा होने से दवाओं की जरूरत कम पड़ती है। लेकिन, अलवर में इन चार महीनों ही पेंशनर के नाम से दोगुना दवा खपाई जाती है। जिसका कारण है कि पेंशनर को साल में मिलने वाली 20 हजार रुपए की दवा को कई तरह की फर्जकारी करके पूरा करना होता है। जबकि पेंशनर को इसकी भनक भी नहीं लगती। तीन साल पहले कोषाधिकारी ने दवा भण्डारों पर छापे मारे तो यह खेल पकड़े में जरूर आया लेकिन, बंद नहीं हो सका है। अब भी यही जालसाजी जमकर होती है।
ये तीन तरीके दवा का पैसा हड़पने के
कारण एक : पेंशन बुजुर्ग, पत्नी अशिक्षित
असल में पेंशनर बुजुर्ग होते हैं। बहुत से पेंशनर की पत्नी अशिक्षित होती हैं। नियम है कि पेंशन आने में सक्षम नहीं है तो पत्नी आकर दवा ले जा सकती है। जो अंगूठे लगाती है। दवा भण्डार संचालकों को पता होता है कि किस पेंशनर का कितना बबैलेंस बचा हुआ है। वे अंगूठे वाली पर्ची को मनमर्जी के अनुसार बदल देते हैं। महंगी दवा लिख देते हैं। दवाओं की संख्या बढ़ा देते हैं। पेंशनर को पता नहीं चलता है।
कारण दो : पेंशनर की डायरी कब्जे में
काफी ऐसे पेंशनर हैं जो अपने बच्चों के साथ जिले से बाहर रहने चले जाते हैं। उनकी डायरी फर्जी भी बना लेते हैं।बहुत बार ऐसा होता है कि पेंशनर से मांग लेते हैं। फिर उन डायरियों की पूरी दवा उठाते हैं। इसके अलावा चिकित्सक को अधिक दवाओं की जरूरत बता लिमिट भी बढ़ाते हैं। आखिरी के चार महीनों में यह खेल होता है। तभी तो तीन साल पहले छापे में भण्डारों पर डायरिंग मिली थी।
कारण तीन : महंगी रेट वाली दवा थमा रहे
कमिशन के कारण फॉर्मासिस्ट महंगी दवा मंगाते हैं। जिन पर रेट अधिक होती है और बेचने पर कमिशन भी ज्यादा मिलता है। पेंशनर जो चाहता है वह दवा नहीं मिलती तो ये दवा देते हैं। एक बार नहीं मिलने पर दुबारा पेंशनर आने-जाने से बचने के चक्कर में दवा ले जाते हैं। जिससे दवा पर खर्च राशि बढ़ जाती है। यह सब स्टॉकिस्ट व फॉर्मासिस्ट के बीच का खेल है। जो विभागों के अधिकारी व कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।
ये आंकड़े हैं बड़े सबूत
वर्ष 2018-19 में महीनेवार दवा खपत
अप्रेल2018-73.66 लाख
मई 2018- 78.59 लाख
जून 2018- 75.22 लाख
जुलाई 2018 – 81.69 लाख
अगस्त 2018- 86.79 लाख
सितम्बर 2018- 76.93 लाख
अक्टूबर 2018 – 88.45 लाख
नवम्बर 2018- 86.64 लाख
दिसम्बर 2018 – 91.76 लाख
जनवरी 2019- 96.98 लाख
फरवरी 2019- 113.97 लाख
मार्च 2019- 160 लाख
कुल करीब – 12 करोड़ की दवा
वर्ष 2019-20 को देखें
अप्रेल 2019- 103 लाख
मई 2019- 113 लाख
जून 2019 – 112 लाख
जुलाई 2019 -129 लाख
अगस्त 2019 126 लाख
सितम्बर 2019- 124 लाख
अक्टूबर 2019 – 124 लाख
नवम्बर 2019- 134 लाख
अब तक – करीब 10 करोड़ की दवा
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चिकित्सक की राय : सर्दी में बैक्टिरिया कम पनपते हैं
सर्दी व गर्मी की तुलना में गर्मी के दिनों में बैक्टिरिया तेजी से पनपते हैं। उन दिनों में बैक्टिरिया के लिए उपयुक्त तापमान होता है। तभी तो गर्मी के दिनों में खाद्य सामग्री दो घण्टे में खराब होने का डर रहता है लेकिन, सर्दियों में ऐसा नहीं है। दवाओं की खपत इन महीनों में बढ़ती है तो यह जांच का विषय है।
डॉ. ओपी मीना, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अलवर
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डायरी लेकर भी गड़बडी हो रही
हो सकता है कि डायरियां लेकर गड़बड़ी करते हैं। डॉक्टरों के साथ मिलकर दवा लिखवा लेते होंगे। बहुत से लोग ऐसे है जो बीमार नहीं होते हैं तो उनसे ये डायरियां ले लेते होंगे। बजट खपाने का खेल होता है। पहले भी डायरियां पकड़ी गई हैं। कुछ चिकित्सक भी इसमें मिले होते हैं।
मुधसूदन शर्मा, अध्यक्ष, पेंशनर समाज अलवर

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