कविताओं, शेरो-शायरी और गजलों के लिए विख्यात मिर्जा गालिब का इंतकाल हुए 220 साल हो गए हैं लेकिन वो युवा दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। मुगल काल के अंतिम शायर और कवि मिर्जा गालिब पर भारत और पाकिस्तान में कई नाटक और फिल्मे बन चुकी हैं। दुनिया भर मेंं उन पर कितने ही सीयिरल बन चुके हैं।
यदि इस वर्तमान समय में मिर्जा गालिब जन्म लेते और अपना शेरों-शायरी व कविता पाठ में अपना कॅरियर बनाना चाहते तो वे अपने आपको स्थापित करने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाते। इस पर कारवां फाउंडेशन और रंग संस्कार थियेटर ग्रुप की ओर से पांच दिवसीय अलवर रंग महोत्सव के पांचवे दिन गालिब इन न्यू देहली नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक को देखकर प्रताप आडिटोरियम में बैठे सैकड़ों दर्शक हंसी नहीं रोक पाए। नाटक के बीच-बीच में खूब तालियां बजी।
इस नाटक के अब तक 430 मंचन हो चुके हैं और यह हास्य से भरपुर देश का सबसे अधिक लंबे समय तक मंचित होने वाला नाटक है। डॉ. सईद आलम की ओर से निर्देशित व लिखित यह नाटक दुबई व इंग्लैंड सहित कई देशों में अपनी छाप छोड़ चुका है। इस नाटक में पूरी कहानी गालिब की आज के युग में अपनी पहचान बनाने के लिए किए जाने वाले संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है। मिर्जा गालिब को दिल्ली विश्वविद्यालय में बिहारसे आए एक छात्र के साथ नौकरों के साथ क्वार्टर में रहना होता है। उनका विश्वास तब गड़बड़ा जाता है, जब उसकी पहचान जगजीत सिंह की आवाज या नसरूदीन शाह की फिल्म से होती है। ऐसे में वह अपने किरदार को स्थापित करने की कोशिश करता है, इसके लिए वह प्रेस कांफ्रेस व एडवरटाइजिंग की मदद लेता है। नाटक ने अंत तक दर्शकों को खूब गुदगुदाया। नाटक में गालिक की भूमिका में लेखक डॉ. सईद आलम थे। बस कंडक्टर की भूमिका में हिमांशु श्रीवास्तव, पनवाड़ी की भूमिका में जसकरण चौपड़ा, श्रीमती चड्डा व अलका माथुर की भूमिका में नीति फूल, जय हिंद की भूमिका में आयमन अंसारी व पुलिस की भूमिका में मनीष सिंह ने भूमिका निभाई।
अलवर से नाता है मिर्जा गालिब का मिर्जा गालिब का जन्म आगरा में 1792 मेंं हुआ था। इनके परिवार का अलवर से नाता रहा है। इनका परिवार माचाड़ी में रहा है। गालिब के दादा मिर्जा कोकान बेग समरकंद से आकर सम्राट मुहम्मद शाह के यहां काम करने लगे।इनके दो लड़के मिर्जा गालिब के पिता अब्दुल्ला बेगव चाचा नसरूउल्ला थे। मिर्जा गालिक के पिता अब्दुला बेग 1802 में अलवर में गढ़ी की लड़ाई में राजा बख्तावर सिंह के जमाने में मारे गए। महाराजा बख्तावर सिंह ने मिर्जा गालिब परिवार को अपने शासनकाल में पेंशनदी और गोविन्दगढ़ के पास तालड़ा में जागीर दी। इस परिवार का अलवर के राज परिवार के साथ मित्रवत व्यवहार रहा जो 1862 तक चला। इतिहासविद् हरीशंकर गोयल ने बताया कि मिर्जा गालिब का राजा विनयसिंह, शिवदान सिंह से भी पत्र व्यहार रहा है। मिर्जा गालिब 1860 में अलवर भी आए थे। उन्होंने फारसी में राजगढ़ व अलवर पर कविता भी लिखी थी।