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डिग्री न उस्ताद फिर भी ढोलक में पाई महारत

locationअलवरPublished: Mar 14, 2018 11:58:21 am

Submitted by:

Prem Pathak

दस साल के नमन गुप्ता की ढोलक सुनकर हर कोई उनका दीवाना हो जाता है

naman of alwar is master in dholak paying
कहने को ढोलक एक साधारण देशी वाद्य है। लेकिन इसकी खास बात यह है कि एक बार अच्छी लगे तो सुनने वाला सुनता ही चला जाता है। यदि बजाने वाला कोई छोटा बालक हो तो सुनने वाले उसे सुने बिना नहीं रह सकता। अलवर के लादिया मोहल्ले में गुप्ता स्कूल के पास रहने वाले दस साल के नमन गुप्ता की ढोलक सुनकर हर कोई उनका दीवाना हो जाता है। भगवान के भजन हो या फिर रामचरितमानस का पाठ, सुंदर कांड हो हनुमानचालीसा की चौपाई, इस बालक की अंगुलियों की थाप जब ढोलक पर पड़ती है तो लोग घंटों उसे सुनने के लिए बैठे रहते हैं। फिल्मी गीत — तेरे रश्के कमल तू हैं मेरी नजर… पर नमन की अंगुलियां ढोलक पर जाती हैं तो सब उसकी प्रतिभा के कायल हो जाते हैं।
नमन ने बताया कि ढोलक को लोग भले ही पुराना वाद्ययंत्र कहें, लेकिन मेरे लिए यह एक जुनून है। मैं टीवी शो आदि में जाकर इस कला को दिखाना चाहता हूं। मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे महंगे वाद्ययंत्र नहीं खरीद सकते हैं। उम्र कम होने के बाद भी 5 घंटे एक जगह बैठकर बिना रुके ढोलक बजाने के बाद भी न चेहरे पर थकावट आती हैं और न ही अंगुलियां थकती हैं। महल चौक के गांधी स्कूल में कक्षा पांचवीं में पढऩे वाले नमन गुप्ता ने ढोलक को बजाने के लिए कोई डिग्री नहीं ली हैं और न ही उन्होंने किसी उस्ताद से प्रशिक्षण लिया है। उसके पिता जयनारायण गुप्ता ही उसके गुरु हैं। स्कूल के कार्यक्रम हों या फिर कोई धार्मिक आयोजन हर कहीं वह अपनी इच्छा से ही ढोलक बजाने के लिए जाता है। पिता ने बताया कि जब वह मात्र 5 साल का था तभी से ही उसके अगुंलियां स्वत: ही ढोलक को देखकर उठने लगती। कभी-कभी वह टीवी पर चलने वाले फिल्मी गीतों को सुनकर जमीन पर अंगुलियां रखकर बजाने लगता है। तभी हमें पता चला कि उसका रूझान ढोलक में हैं। परीक्षा में पास होने पर उसने उपहार में ढोलक मांगी तो मुझे उसकी ख्वाहिश पूरी करनी पड़ी। ढोलक आने पर वह नियमित रियाज करने लगा। शहर में होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका है।
नन्हें बालक की प्रतिभा को देखकर अनेक संस्थाओं ने उसे सम्मानित भी किया है।
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