आग लगने पर बुझाने के उपकरण बिल्कुल नहीं है। शहर के बीचोंबीच कम्पनी बाग के पास निजी बालिका छात्रावास है। छोटे से भूखण्ड पर चार मंजिला इमारत बना दी। आधे हिस्से में व्यावसायिक गतिविधि हो रही है और आधे हिस्से में बालिका छात्रावास चल रहा है। संकरी सीढिय़ों के सहारे हॉस्टल में चढऩा पड़ता है। एक मंजिल पर तीन से चार कमरे हैं। किसी कमरे में तीन तो किसी में दो छात्राएं रहती हैं। आने-जाने का एक ही रास्ता हैं। वेंटिलेंशन भी नहीं है। आगजनी जैसी घटना हुई तो धुआं निकलने की जगह तक नहीं है। खास बात आग बुझाने का कोई उपकरण नहीं है। इस छात्रावास का संचालन कर रही महिला से पूछने पर उसने बताया कि आग बुझाने का कोई उपकरण नहीं है।
स्कीम तीन में हॉस्टल, कोई सिस्टम नहीं स्कीम तीन में करीब 25 फीट संकरी गली में हॉस्टल है। हॉस्टल में आने-जाने का एक ही रास्ता है। करीब दस कमरे हैं। सबमें अगल-अलग कूलर लगे हैं। शॉर्ट सर्किट से आए दिन आग लगने की घटनाएं होती हैं। छात्रावास होने के बावजूद यहां कोई उपकरण नहीं है। जिससे आपातकाल परिस्थिति में सामना किया जा सके। यहां रह रहे विद्यार्थियों ने बताया कि एक केयर टेकर हैं। जो अभी कहीं गया होगा। एक विद्यार्थी के महीने के साढ़े छह हजार रुपए लिए जाते हैं।
एरोड्रम रोड व स्कीम दो सहित पूरे शहर में ज्यादातर आवासीय मकानों में छात्रावास चल रहे हैं। छात्रावास संचालन करने वालों को कोई परवाह नहीं है। नगर परिषद आयुक्त फतेह सिंह का कहना है कि आग बुझाने के उपकरण नहीं मिलने पर 100 से अधिक नोटिस दिए जा चुके हैं।