गत ढाई साल में अकेले पैंथर के आबादी क्षेत्रों में आने की एक दर्जन से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2016 व 17 में सरिस्का के आबादी क्षेत्रों में पैंथरों ने 6-7 लोगों को हमला कर मौत की नींद सुला दिया। इतना ही नहीं जिले के शहरी क्षेत्र अलवर, भिवाड़ी भी पैंथरों की मार से अछूते नहीं बचे।
पैंथर रेस्क्यू के समय नहीं थे पर्याप्त संसाधन पिछले दिनों अलवर के स्कीम नम्बर एक आर्यनगर में पैंथर आने के दौरान वनकर्मी तो मौजूद थे, लेकिन रेस्क्यू के दौरान बचाव के लिए संसाधनों का अभाव था। सरिस्का से आई टीम के पास पैंथर को ट्रंक्यूलाइज करने के संसाधन थे, लेकिन जाल व अन्य संसाधन नहीं थे। वहीं वन विभाग के अलवर डिविजन के वनकर्मियों के पास छह किट थे।
पलटवार की स्थिति में हो सकती थी परेशानी रेस्क्यू के दौरान यदि पैंथर के पलटवार की कोई अनहोनी घटना हो जाती तो, वनकर्मियों को अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता। कारण है कि पैंथर रिहायशी इलाके में करीब साढ़े सात घंटे वनकर्मियों को दौड़ाता रहा। इस दौरान वह कई बार सडक़ पर भी आया और मकानों से भी कूदा। जबकि सडक़ों पर हजारों लोगों की भीड़ जमा थी।
वनकर्मी पहले भी कर चुके मांग
सरिस्का वन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामवीरसिंह गुर्जर के नेतृत्व में वनकर्मी पूर्व में भी रेस्क्यू संसाधन मुहैया कराने के लिए उच्च अधिकारियों को ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन वनकर्मियों को पर्याप्त संसाधन मिलने का इंतजार है।
पैंथर रेस्क्यू के लिए यह संसाधन जरूरी पैंथर को रेस्क्यू के लिए 10 वनकर्मियों की प्रशिक्षित टीम, दो जाल, दो रस्से, एक लंबा फोल्ड होने वाला पाइप, पांच स्टील पाइप, फस्टऐड किट, अच्छी क्वालिटी के हेलमेट, एल गार्ड, लेग गार्ड, चेस्ट गार्ड, हथौड़ी, ग्राइंडर, प्लास, कुल्हाड़ी, दो अच्छी क्वालिटी के पिंजरे, एक विशेष गाड़ी जिसमें पिंजरा लगा हो, एक वनीकूलर (दूरबीन), वनकर्मियों के पास अलग रेस्क्यू यूनिफॉर्म, वन्यजीवों की फस्टएड किट होने चाहिए। इसके अलावा दो फर्श, टॉर्च, फोल्डिंग चारपाई, डंडे आदि भी होना जरूरी है।