बस याद रहता तो यही कि अब तो गर्मी की छुटिटयंा चल रही है। सबसे अच्छा लगता था जब आसपास के घर में कोई बच्चा छुटिटयंा बीताने आता था। वो भी टीम में शामिल हो जाता और दिन भर खूब धमा चौकड़ी मचाता। घर वाले डांटते तो चुप रहकर सह लेते, अगले दिन फिर से वो ही मौज मस्ती। जब खेल कूद से फुर्सत मिलते तो कॉमिक्स की दुकान पर पहुंच जाते। जो भी जेब खर्ची मिलती उसे जोडकऱ कॉमिक्स खरीद लेते। कभी मौका मिलता तो नाना नानी के चले जाते।
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है खेलकूद अब घर के आंगन तक सिमट गया है। अब छुटिटयों में बच्चे घर में ज्यादा रहते हैं। सारा दिन मोबाइल ओर टीवी देखते ही निकल जाता है। पता भी नहीं चलता कि घर में बुआ और मामा भी आए हुए हैं। सारी दुनिया मोबाइल में सिमट गई है। अब पुराने खेल यादों में ही सिमट गए हैं। माहौल भी बहुत बदल गया है। लड़कियां बाहर खेलने निकलती है तो घर वाले तुरंत अंदर बुला लेते हैं, बाहर खेलने जाती है तो हर कदम पर उसका ध्यान रखा जाता है।