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40 साल पहले जिस पर पगड़ी रख दी वही सरपंच, अब बाप की ही नहीं मानता बेटा

locationअलवरPublished: Jan 22, 2020 08:38:27 pm

Submitted by:

Dharmendra Yadav

कैरवाड़ा में 70 से 85 साल के बुजुर्गों ने पत्रिका से साझा किए अपने अनुभव

40 साल पहले जिस पर पगड़ी रख दी वही सरपंच, अब बाप की ही नहीं मानता बेटा

40 साल पहले जिस पर पगड़ी रख दी वही सरपंच, अब बाप की ही नहीं मानता बेटा

अलवर. आजादी के साथ ही सरपंच बनाते आ रहे कैरवाड़ा ग्राम पंचायत के बुजुर्ग बूथ से काफी दूर टोली बनाकर हुक्के के साथ बैठे दिखे तो उनसे चुनावी चर्चा हो गई। सालों पहले और आज के चुनावों में अन्तर को बुजुर्गों से जानना चाहा तो एक बुजुर्ग ने सिर पर हाथ रख कर कहा, वो भी एक जमाना था। ये भी एक जमाना है। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है करीब, 40 साल पहले तक ऐसा होता रहा है कि गांव के कुछ लोगों ने मिलकर किसी एक व्यक्ति के सिर पर पगड़ी रख दी, मतलब वही सरपंच बन गया। आज कल की युवा पीढ़ी ने तो पूरा चुनाव ही बिगाड़ दिया। अब चुनाव के दिनों में इतनी तनातनी हो जाती है कि गांवों में धड़े बंट जाते हैं। इसके अलावा चुनावी खर्च की पूछो मत। लाखों से कम तो शायद ही किसी ग्राम पंचायत के एक प्रत्याशी का खर्चा हो। बहुत से गांव तो ऐसे हैं जहां करोड़ रुपए भी लग जाते हैं।
बाप की भी नहीं मानता बेटा
मलावली खोहरा निवासी 87 साल के बुजुर्ग लल्लूराम ने कहा कि अब पुराने लोगों की पूछ नहीं है, नयों की है। यह सच है कि पुराने समय में बेइमानी नहीं थी। अब पुरानों की मान्यता नहीं रही। जवान लोग अपनी मर्जी करने लग गए हैं। पहले की बात छोड़ो। अब तो बेटा बाप की भी नहीं मानता है। चुनाव में पैसे की बर्बादी जमकर होती है। पूरी नौकरी व खेती का पैसा चुनाव में लगा देते हैं। कोई समझने वाला नहीं है। चुनाव में दंगा तो नहीं है लेकिन, अब पैसे के बल पर चुनाव होने लग गया। एक-एक की वोट मशक्कत होती रहती है।
युवाओं ने कहा यह सही है कि अब युवाओं का चुनाव रह गया है। युवा पढ़े लिखे हैं। नए दौर की राजनीति को समझते भी हैं। जनप्रतिनिधि के सामने विकास कराना बड़ी चुनौती होता है। इसी कारण नए चेहरे चुनावों में अधिक नजर आते हैं।
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