श्रीरामकथा में शामिल होने आए स्वामी ने राजस्थान पत्रिका से विशेष बात की। उन्होंने पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली परंपराओं और संस्कारों में धर्मानुकूल परिवर्तन की बात कही। गणपति विसर्जन, अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में बड़े बदलाव का संदेश भी दिया। कथा इंटरनेट से जोड़ती है: स्वामी ने कहा कि नई पीढ़ी को संस्कार देना जरूरी है। घर पर मां ही सबसे पहला गुरु है। परिवारों के माध्यम से संस्कार का उदय होता है। बच्चे इंटरनेट से पूरे जगत का ज्ञान ले सकते हैं पर कथा रूपी इनरनेट से हमें अंतस का ज्ञान होता है। इसके लिए परिवार के संस्कार जरूरी हैं।
बड़ी चिंता
हर साल 8 करोड़ पेड़ अंतिम संस्कार के लिए ही कट जाते हैं स्वामी ने चिंता जताते हुए कहा कि अंतिम संस्कार में लकड़ी का इस्तेमाल होता है। हम पेड़ लगाने भूल गए लेकिन इस संस्कार में हर साल देश में करीब 8 करोड़ पेड़ कट जाते हैं। इसके साथ ही पूरी की पूरी अस्थियां गंगा में प्रवाहित होती हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है उसकी भरपाई संभव नहीं है।
उपयोग सुझाव
गाय गोबर से हो अंतिम संस्कार स्वामी ने बताया कि इसके लिए मशीनें तैयार करवाई गई हैं। कई शहरों में प्रयोग शुरू हो गए हैं। इसमें गोबर को कंप्रेस कर लकड़ी सरीखा स्वरूप बन जाता हैै। इसकी ज्वलनशीलता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। इससे गोवंश का महत्व बढ़ेगा। जो दूधारू गोवंश नहीं है वह भी उपयोगी माना जाएगा। देश भर मेें यह प्रक्रिया शुरू होने से हम पर्यावरण में बहुत बड़ा योगदान देंगे।
ऐसे होगा प्रचार बिलों से नहीं दिलों से होगी बात स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि अंतिम संस्कार में गोबर की काष्ठ के प्रयोग की प्रक्रिया संसद के बिलों से शुरू नहीं होगी। इसे आमजन के दिलों से शुरू करवाना होगा। इसके लिए अब कुंभ मेले से सभी संत यह बात रखेंगे। कई जगह यह शुरूआत हो चुकी है।