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प्रयागराज: नाम बदला, मुद्दे जस के तस, महंगाई और बेरोजगारी को लेकर भी जनता मुखर

Prayagraj UP Ground Report: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पढ़ें संगम नगरी प्रयागराज से ग्राउंड रिपोर्ट-

अलवरNov 30, 2021 / 11:28 am

Hiren Joshi

प्रयागराज: नाम बदला, मुद्दे जस के तस, महंगाई और बेरोजगारी को लेकर भी जनता मुखर

यह प्रयागराज है। अब इलाहबाद न कहिए। पूरे देश की आस्था के केंद्र तीर्थराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम की ओर जाते हुए नाव में केवट श्यामधन निषाद ने कुछ इस अंदाज में बदलाव की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि नाम बदलने से तीर्थ से जुड़े लोग खुश हैं पर मुद्दे जस के तस हैैं। कुंभ के प्रबंधन के बारे में पूछा तो बोले कि कमाल की व्यवस्था थी। सब केवट और निषाद निहाल हो गए। शहर का भी भला हुआ।
साथी राजेश केवट ने बताया कि अद्र्धकुंभ भी कुंभ से बड़ा बन गया था। पर सब किया कराया बेकार चला गया। जो कुंभ में कमाया वह कोराना में गंवा दिया गया। कोराना काल की बेरोजगारी जीवन में कभी नहीं भूलेगी। अब सब उधारी में जी रहे हैं। राजनीति अपनी जगह पर पेट की चिंता पहले है। उन्होंने कहा कि अब माघ मेले से उम्मीद है। इस बार कमाई अच्छी हो जाए तो कर्ज उतर जाएं और आगे का रास्ता बने। अभी तो सब अपनी नावों को ठीक करवा रहे हैं ताकि माघ में काम मिल जाए। शहर मेें हनुमन निकेतन चौराहे के पास बने नए सेल्फी पॉंइट आई लव प्रयागराज पर बाहर से आने वाले पर्यटकों की भीड़ थी।

फूलपुर से कांग्रेस का नाता अब धुंधला
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इसी जगह से फूलपुर से संसद में पहुंचते थे। बाद में विजयलक्ष्मी पंडित भी फूलपुर से जीती। पर आज प्रयागराज में कांग्रेस भी पुराने नाम इलाहबाद की तरह मौजूद तो है पर कागजों में प्रयागराज और बीजेपी जम गए हैं। राजीव गांधी के समय कांग्रेस से जुड़े इलाहबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर रामकिशोर शास्त्री से जब कांग्रेस की स्थिति पर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि जिस दिन नरसिम्हा राव सरकार के समय यहां मायावाती से पार्टी का गठबंधन हुआ और मात्र 125 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा। तब से यहां कांग्रेस की स्थिति कमजोर होती गई। उन्होंने कहा कि अब मुश्किलें इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि राजनीति में पूरी तरह से जातिवाद और धर्म के आधार पर विभाजन हो रहा है। ऐसे में यहां कांग्रेस की डगर कठिन है। यह जरूर है कि भाजपा की इलाहबाद से सांसद रीता बहुगुणा जोशी कभी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष थी। पुराने कांग्रेसी वोटर प्रियंका के अभियान में बदल जाएं तो भाजपा के लिए चिंता बढ़ सकती है।

अतीक अब अतीत पर अपराध वर्तमान मुद्धा
इलाहबाद पश्चिम से पांच बार विधायक और फूलपुर से सांसद रह चुके बाहुबली नेता अतीक अहमद इस समय साबरमती जेल में हैं। शहर में अतीक का नाम काफी था। पर अब अतीक का खौफ अतीत बन चुका है। शहर के रजाई व्यवसायी मोहम्मद आलम ने कहा कि अतीक को जेल में बंद करने से अपराध कम नहीं हुआ है। अपराध तो पहले से बढ़ गया है। उनका मानना है कि मदरसा कांड के बाद जो गुस्सा था उसके बाद अब अतीक के प्रति सहानुभूति है। सपा और कांग्रेस अपराध और अपराधियों में भेदभाव को मुद्धा बना रहे हैं। फाफामऊ के एक गांव में एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या के मामले में बीते सप्ताह प्रियंका गांधी पीडि़तों से मिलने पहुंची थी।

महंगाई, बेरोजगारी, किसान
मीठे अमरूद्ध के लिए प्रसिद्ध प्रयागराज में इस काम से जुड़े लोग दुखी हैं। चुनाव मुद्दा तो नहीं कह सकते पर बागों में कीड़े की समस्या के कारण उपज अच्छी नहीं हुई। अहमदपुर पावनी गांव के फल व्यवसायी चंद्रेश सोनकर ने बताया कि अमरूद की पैदावर अच्छी नहीं हो रही है। इलाहबादी ज्ञान में उन्होंने बताया कि सरकार समस्या की जड़ पर ध्यान नहीं दे रही। उन जैसे हजारों फल व्यवसासियों का मानना है कि मोबाइल टावर की वजह से चिडिय़ों की संख्या कम हो गई। इस वजह से पेड़ों में कीड़े कौन मारे? उनके साथी शुभम सोनकर और मंजीत सिंह ने कहा कि अमरूद के भाव तो वही हैं पर अन्य खर्चे बढ़ गए। महंगाई बड़ मुद्दा है। इलाहबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की डॉ. सुरभी त्रिपाठी का कहना है कि आम चर्चा में महंगाई मुद्दा नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि छात्र बेरोजगारी को लेकर मुखर हैं। झूंसी क्षेत्र के किसान रामभरोसे यादव ने कहा कि किसानों का मुद्दा केवल कृषि कानून नहीं है। आवारा पशु और नीलगाय बड़ी समस्या है। नील गाय की वजह से कई किसानों ने दलहन की खेती ही बंद कर दी। इन समस्याओं का समाधान जरूरी है। पर सरकारें और विपक्ष अलग ही मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं।


सीटों की स्थिति- एक नजर
फूलपुर और इलाहबाद लोकसभा क्षेत्रों के साथ ही क्षेत्र में 12 विधानसभा सीट हैं। विधानसभा में बीजेपी का दबदबा है। 9 सीट बीजेपी के पास हैं। एक पर सपा और दो बसपा के पास हैं। बसपा के दोनों विधायक अब अंतिम समय पर सपा के पाले में आ चुके हैं। जबकि लोकसभा में दोनों सीटें बीजेपी के पास हैं। 2019 से पहले हुए लोकसभा उपचुनाव ने यहां एक बार बीजेपी की नींद उड़ा दी थी और गठबंधन को नए सपने दिखाए
थे। पर आम चुनाव में पार्टी ने राहत की सांस ली थी।
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