अभिभावकों से बातचीत पहले एक पिता कमाता था तो ही सारा घर खर्च चल जाता था, क्योंकि ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ते थे। खर्चा कम होता था और शिक्षा भी गुणात्मक होती थी। अब पति पत्नी मिलकर कमाते हैं तो भी बच्चों को इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती क्योंकि एक की कमाई तो बच्चों की पढ़ाई में ही चली जाती है। निजी स्कूलों की फीस मनमानी पर रोक लगनी चाहिए।
सुनीता शर्मा, गृहणी
आजकल दिखावे का जमाना है। बड़े स्कूलों में हजारों की फीस देकर अभिभावक समाज में नाम कमाना चाहते हैं। सरकारी स्कूलों में उच्च शिक्षित शिक्षक होते हैं। सुविधाएं ज्यादा होती है, छात्रवृत्ति मिलती है और भी कई सुविधाएं दी जाती है इसके बावजूद लोग अपने बच्चों को यहां नहीं पढ़ाते हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़े हुए विद्यार्थी आज भी हर क्षेत्र में नाम कमा रहे हैं। हमें शिक्षा के नाम पर लूटने से बचना चाहिए।
गजेंद्र शर्मा, सरकारी शिक्षक
प्राइवेट स्कूल में प्रवेश के नाम पर मोटी रकम ली जाती है। इसके साथ ही साल भर एनुअल डे, स्पोर्टस डे सहित अन्य गतिविधियों का अलग खर्च से लिया जाता है। हर साल मनमानी फीस बढा़ दी जाती है कोई रेसो नहीं है। स्टेशनरी, डे्रस सबके लिए दुकानें तय की हुई है। यहां मोटा कमीशन लिया जाता है। लाख प्रयासों के बाद भी इन पर रोक नहीं लग पाई है।
सुमित कुमार, ई मित्र संचालक
अलवर के स्कूलों में कई बार फीस को लेकर बहुत विवाद हो चुका है, लेकिन आज तक फीस की बढ़ोतरी पर शिक्षा विभाग कोई लगाम नहीं लगा पाया है। क्योंकि ज्यादातर स्कूल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के हैं। इन स्कूल संचालकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से विभाग डरता है। इससे स्कूल संचालकों को मनमानी फीस वृद्धि करने का मौका मिल जाता है।
हर्षकुमार शर्मा, सेवानिवृत आयुर्वेद अधिकारी।