राज्य व केन्द्र सरकारों की तरह नगर परिषद भी हर साल अलवर शहर का बजट बनाकर सदन में प्रस्तुत करती है। जिस पर नगर परिषद बोर्ड के सदस्यों से चर्चा कर बजट पारित किया जाता है। वैसे तो बजट साल दर साल कई करोड़ रुपया बढ़ रहा है। लेकिन शहर के विकास में कोई बड़ी भूमिका नजर नहीं आती है। छोटा-मोटा विकास कार्य भी शहर की बदहाली तले दब जाता है। आमजन का मानना है कि शहर कचरे से अटा रहता है। लावारिश पशुओं के कारण आए दिन दुर्घटनाए हो रही हैं। कइयों की मौत भी हो चुकी है। अतिक्रमण के हालात भी सबके सामने हैं। प्रमुख बाजारों में आमजन को पैदल चलने की जगह नहीं मिल रही है। वाहनों से निकलना तो बेहद मुश्किल है। अलवर की जनता का कहना है कि उन्हें बजट में चाहे कुछ न मिले, पर कम से कम शहर तो साफ हो। अलवर की जनता का को बजट से कोई मतलब नहीं है, उन्हें केवल गंदगी व अतिक्रमण से छुटकारा मिले।
अलवर की गंदगी के प्रति यहां की जनता में खासा रोष है। लोगों का कहना है कि वैसे भी झूटी योजनाओं से कुछ मिलता तो है नहीं इसलिए वे केवल शहर की सफाई चाहते हैं।
पिछले साल 42.38 करोड़ का बजट प्रस्तावित नगर परिषद का सत्र 2017-18 में अनुमानित बजट 42.38 करोड़ रुपए था। नए वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए अनुमानित बजट 49.71 करोड़ रुपए रखा है। इस प्रस्तावित बजट में रोशनी, सफाई, सम्पतियों के रखरखाव पर आगामी वित्तीय वर्ष में करीब 22.44 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसी तरह पूरा 49 करोड़ रुपए का बजट बंटा हुआ है। आमजन का मानना है कि शहर सुन्दर दिखना चाहिए। जगह-जगह गंदगी नहीं हो। प्रतिदिन सफाई हो। घर-घर से कचरे का संग्रहण हो। लावारिश पशुओं से मुक्ति मिले। गंदे नाले साफ होते रहें। शहर के प्रमुख सडक़ें हो या बाजार। अतिक्रमण नहीं हो। इतना होने के बाद ही जनता आगे के विकास को लेकर अपनी बात रख सकती है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है इस समय इनमें से किसी भी समस्या से राहत नहीं है। बल्कि दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं।