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विधानसभा चुनाव : महिलाओं की लोकतंत्र में आधी भागीदारी, लेकिन नहीं मिलती जिम्मेदारी, यह आंकड़े आपको चौंका देंगे

locationअलवरPublished: Oct 13, 2018 02:31:58 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

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Raj Elections 2018 : Very Less Involvement Of Women In Raj Elections

विधानसभा चुनाव : महिलाओं की लोकमंत्र में आधी भागीदारी, लेकिन नहीं मिलती जिम्मेदारी, यह आंकड़े आपको चौंका देंगे

राजनीतिक दल चुनावी राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की कितनी ही पैरवी करते हों, लेकिन हकीकत यह है कि चुनाव के दौरान टिकट वितरण में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में ज्यादातर दल सकुचाते रहे हैं। यही कारण है कि ज्यादातर विधानसभा चुनाव में अलवर जिले से विधानसभा तक पहुंचने वाले विधायकों में महिलाओं की संख्या एक-दो से ऊपर नहीं पहुंच पाई है। यह स्थिति तो तब है जब जिले में 2445075 मतदाताओं में 1150901 महिला मतदाता हैं। यानि कुल मतदाताओं में करीब आधी संख्या महिलाओं की है।
कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य प्रमुख दलों की ओर से हर चुनाव में महिलाओं को ज्यादा टिकट देने के दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ज्यादातर दल महिलाओं को उम्मीदवार बनाने में हिकचते हैं। यही कारण है कि संसद हो या विधानसभा महिलाओं का प्रतिनिधित्व नाम मात्र का ही रह पाता है। अकेले अलवर जिले में 11 विधानसभा क्षेत्र हैं, लेकिन यहां से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों की संख्या में महिलाओं का प्रतिनिधित्व एक-दो सीट से आगे नहीं बढ़ पाता। इसका अंदाजा विधानसभा क्षेत्रों में दाखिल नामांकन में से महिला प्रत्याशियों की संख्या से सहज ही लगाया जा सकता है।
नामांकन में दस फीसदी से आगे नहीं बढ़ता आंकड़ा

आधी आबादी और लोकतंत्र में भागीदारी का आंकलन करें तो विधानसभा चुनाव के दौरान दाखिल होने वाले नामांकन में महिलाओं का आंकड़ा 10 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पाता। वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव में जिले के 11 विधानसभा क्षेत्रों में 204 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किए, लेकिन उनमें महिलाओं की संख्या मात्र 26 थी। वहीं वर्ष 2008 के चुनाव में 224 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए, लेकिन इनमें महिला प्रत्याशी मात्र 23 रहीं। इसी तरह वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जिले में कुल 126 नामांकन दाखिल हुए, इनमें महिलाओं का आंकड़ा 11 ही पहुंच पाया। वहीं वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में जिले के 11 विधानसभा क्षेत्रों से 119 नामांकन दाखिल किए गए, इनमें महिलाओं की संख्या 8 तक ही सीमित रही।
डेढ़ दशक में दो महिलाएं पहुंची विधानसभा तक

राजनीतिक दलों की ओर से टिकट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाने का नतीजा है कि महिलाएं हर चुनाव में संसद व विधानसभा तक पहुंचने में पिछड़ जाती हैं। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में एक भी महिला विधायक नहीं चुनी जा सकी। इस चुनाव में कांगे्रस व भाजपा ने मात्र एक-एक महिला को टिकट दिया। दोनों ही महिला प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं करा पाई। इसी तरह वर्ष 2003 विधानसभा चुनाव में भी एक भी महिला विधायक जिले से नहीं चुनी जा सकी। इस चुनाव में भाजपा ने दो महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा, वहीं कांग्रेस ने एक भी महिला को टिकट नहीं दिया। वहीं वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भी जिले से एक भी महिला विधानसभा की दहलीज तक पहुंच पाई। इस चुनाव में कांग्रेस ने एक महिला को टिकट दिया, वहीं भाजपा ने एक भी महिला प्रत्याशी नहीं उतारी। महिलाओं के प्रतिनिधित्व के नाम पर वर्ष 2013 का विधानसभा चुनाव जरूर कुछ हद तक कामयाब माना जा सकता है। इस चुनाव में दो महिलाएं जिले से विधानसभा में पहुंच पाई। इनमें एक कांग्रेस से शकुंतला रावत व दूसरी राजपा से गोलमा देवी विजयी रहीं।
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