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राजस्थान रोडवेज के चालक-परिचालकों को हुई ऐसी गंभीर बीमारी, चिकित्सक भी नहीं लगा पा रहे पता

locationअलवरPublished: Jan 09, 2018 11:49:06 am

Submitted by:

Rajiv Goyal

अलवर रोडवेज के चालक-परिचालकों ने ड्यूटी से बंक मारने का नया तरीका निकाल लिया है। चालक-परिचालक अब ड्यूटी से बचने के लिए फर्जी मेडिकल का सहारा ले रहे है

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अलवर में रोडवेज के चालक- परिचालक इन दिनों एक ऐसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, जिसका चिकित्सक भी पता नहीं लगा पा रहे हैं। स्थिति ये है कि इस बीमारी की चपेट में हर माह 10 से 20 चालक-परिचालक आ रहे हैं। चालक-परिचालकों के बीमारी से ग्रसित होने के चलते रोडवेज को बसों का संचालन करना भी मुश्किल बना हुआ है। मजबूरन रोजाना दो-चार बसों को कटेल करना पड़ रहा है।
हर माह आ रहे 10 से 15 मेडिकल


रोडवेज के अलवर व मत्स्य नगर आगार में हर माह 10 से 15 चालक-परिचालकों के एक ही चिकित्सक के मेडिकल आ रहे हैं। अब रोडवेज के मुख्य प्रबंधक ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को मामले की जांच करा दोषी चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई का पत्र लिखा है। मुख्य प्रबंधक के अनुसार चालक-परिचालक असाध्य बीमारी के मेडिकल के बाद भी घर पर आराम करने की जगह बस स्टैण्ड पर घूमते रहते हैं। इससे उनके बीमार होने पर संदेह बना रहता है।

ड्यूटी पर जाने से बचने के लिए ले रहे फर्जी मेडिकल का सहारा


अलवर रोडवेज के चालक-परिचालकोंने ड्यूटी से बंक मारने का नया तरीका निकाल लिया है। चालक-परिचालक अब ड्यूटी से बचने के लिए फर्जी मेडिकल का सहारा ले रहे हैं। चालक-परिचालकों की इस कारगुजारी में कुछ चिकित्सक भी मिले हुए हैं। वे अच्छे भले चालक-परिचालकों को गंभीर और असाध्य रोग से पीडि़त होने का प्रमाण देने में देर नहीं लगा रहे हैं। इससे रोडवेज बसों के संचालन का संकट खड़ा हो गया है। चालक-परिचालकों की कमी के चलते रोडवेज अधिकारियों को रोजाना बसें कटेल करनी पड़ रही हैं। खास बात ये है कि चालक-परिचालकों से रोडवेज को मिले ज्यादातर मेडिकल एक ही चिकित्सक के बनाए हुए हैं। सभी मेडिकल में उनके बीमार होने का कारण ‘पीयूओ बताया गया है। चिकित्सकीय भाषा में इसे ‘बुखार का कारण पता नहीं कहा जाता है।

टीबी का डॉक्टर, नाप रहा बुखार


चालक-परिचालकों से रोडवेज को प्राप्त ज्यादातर मेडिकल एक टीबी रोग विशेषज्ञ के बनाए हुए हैं। एेसे में या तो रोडवेज के चालक-परिचालकों को टीबी जैसी गंभीर बीमारी है अथवा यह मेडिकल फर्जी हैं। सवाल ये भी है कि पीयूओ अर्थात बुखार आदि होने पर चालक-परिचालक किसी फिजिशियन की जगह टीबी रोग विशेषज्ञ के पास क्यों पहुंच रहे हैं? टीबी रोग विशेषज्ञ भी उन्हें किसी फिजिशियन पर जाने की सलाह की जगह बिना टीबी की जांच किए कैसे मेडिकल सर्टिफिकेट जारी कर रहा है?

पहले आयुर्वेद, अब टीबी का इलाज


रोडवेज के चालक-परिचालकों के फर्जी मेडिकल से बंक मारने का मामला पहले भी सामने आ चुका है। तब रोडवेज को ज्यादातर चालक-परिचालकों के मेडिकल आयुर्वेद चिकित्सकों की ओर से जारी किए मिले। इनमें से एक-दो आयुर्वेद चिकित्सक तो अलवर से करीब 20 से 25 किलोमीटर दूर ड्यूटी पर तैनात थे। मामले में मुख्य प्रबंधक के सीएमएचओ को पत्र लिखने पर आयुर्वेद चिकित्सक तो दूर हो गए और उनकी जगह टीबी रोग विशेषज्ञ के मेडिकल आना शुरू हो गए।

हर माह चालक-परिचालकों के जितने मेडिकल आते हैं, उनमें से लगभग 80 प्रतिशत एक टीबी रोग विशेषज्ञ के जारी किए हुए हैं। मामला संदिग्ध लगने पर सीएमएचओ को पत्र लिखा गया है।
रामजीलाल मीणा, मुख्य प्रबंधक मत्स्य नगर आगार।
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