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अलवर में भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए किया था यह प्रयोग, लेकिन पड़ गया उल्टा और 9 से 2 पर आ गई पार्टी

अलवर जिले में भाजपा की ओर से किए गए प्रयोग भी पार्टी को जिता नहीं सके।

अलवरFeb 25, 2019 / 05:34 pm

Hiren Joshi

अलवर में भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए किया था यह प्रयोग, लेकिन पड़ गया उल्टा और 9 से 2 पर आ गई पार्टी

अलवर. भाजपा ने अलवर जिले के संगठन में बदलाव पर बदलाव किए, लेकिन चुनावों में नतीजे ढाक के तीन पात वाले ही रहे। वर्ष 2018 के शुरू में अलवर लोकसभा उप चुनाव में भाजपा के हाथ से यह सीट गई, वहीं विधानसभा चुनाव में पार्टी की सात सीटें छिन गई। पार्टी की निगाह अब आगामी लोकसभा चुनाव पर टिकी है, यही कारण है कि पिछले दिनों भाजपा ने जिला संगठन प्रभारी के दायित्व में फिर तब्दीली की है।
अलवर जिला भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, यही कारण है कि पार्टी यहां अपने पुराने वजूद को फिर धरातल पर लाने के लिए बड़े से बड़े प्रयोग करने में कसर नहीं छोड़ रही। भाजपा की ओर से सबसे बड़ा प्रयोग जिले के संगठन को लेकर किया गया है।
दो जिलाध्यक्ष भी बदल गए

बीते साल भाजपा के जिला संगठन में भी दो बार बदलाव किया गया। पहली बार पं. धर्मवीर शर्मा के स्थान पर संजय शर्मा को जिलाध्यक्ष बनाकर बदलाव किया। इसके कुछ दिन बाद ही पार्टी ने संजय शर्मा के स्थान पर संजय नरूका को जिलाध्यक्ष का दायित्व सौंपा। हालांकि जिलाध्यक्ष पद के बदलाव में विधानसभा चुनाव की बड़ी भूमिका रही। बदलाव की बयार में संजय शर्मा का अलवर विधानसभा चुनाव का लडऩा भी कारण रहा।
बदलाव का नहीं मिला चुनाव में फायदा

भाजपा की ओर से जिला संगठन प्रभारी व जिलाध्यक्ष पद के बदलाव के बावजूद पार्टी को चुनावों में ज्यादा लाभ नहीं मिल पाया। पार्टी को पहले लोकसभा उपचुनाव में बड़ी हार झेलनी पड़ी। वहीं विधानसभा चुनाव में भी पुराना प्रदर्शन दोहराना तो दूर, पार्टी दो सीटों तक ही सिमट गई। यानि बदलाव की इस कवायद का संगठन को ज्यादा लाभ नहीं मिल पाया।
अब नजर लोकसभा चुनाव पर

पार्टी की नजर अब लोकसभा चुनाव पर टिकी है। यही कारण है पिछले दिनों ही जिला संगठन प्रभारी में फिर से बदलाव किया गया है। वहीं भाजपा के प्रदेश लोकसभा चुनाव प्रभारी प्रकाश जावडेकर व सह प्रभारी सुधांशु त्रिवेदी भी अलवर का दौरा कर चुके हैं। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अलवर से बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन लोकसभा उपचुनाव में वह अपनी बढ़त कायम नहीं रख पाई और हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं पार्टी की निगाह फिर अलवर लोकसभा सीट पर टिकी है।
एक संगठन प्रभारी को मिला तीन माह का समय

भाजपा के लिए अलवर जिला कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है कि करीब एक साल के छोटे अंतराल में पार्टी ने जिला संगठन के प्रभार में चार बार बदलाव किया। यानि एक जिला संगठन प्रभारी को औसतन तीन महीने का समय कामकाज के लिए मिल पाया। इस दौरान पार्टी नेता लक्ष्मीनारायण दबे, अखिल शुक्ला, शैलेन्द्र भार्गव को बदला गया। पिछले दिनों ही अलवर जिले के संगठन प्रभारी का दायित्व मनीष पारीक को सौंपा ।

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