इन सभी मामलों में खास बात ये है कि पुलिस ने सभी मामलों में लीपापोती कर इतिश्री कर ली, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जहमत तक नहीं उठाई गई। रामगढ़ के ललावंडी के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। प्रथम तो पुलिस इसे कस्टडी में मौत नहीं मान रही। जबकि प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो पुलिस कस्टडी में आरोपित करीब तीन घंटे रहा। इन तीन घंटों का हिसाब देने से भी पुलिस बच रही है। उधर, मामले में गिरफ्तार आरोपितों के परिजनों का आरोप है कि उनके बच्चों ने पुलिस की मदद की। आरोपित की मौत पुलिस कस्टडी में हुई, इसका इल्जाम पुलिस उनके बच्चों पर थोप रही है।
एक पखवाड़ा में दूसरी मौत एक पखवाड़ा में पुलिस कस्टडी में मौत का यह दूसरा मामला है। 4 जुलाई को बहरोड़ के नगर पालिका उपाध्यक्ष राकेश शर्मा की हत्या के मामले में गिरफ्तार सुपारी किलर रेवाड़ी के नागलिया निवासी चिंटू उर्फ जयप्रकाश (28) पुत्र रतनसिंह शर्मा की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। पुलिस ने तब चिंटू की मौत का कारण तबीयत बिगडऩा बताया, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर पर कई चोटों के निशान मिले।
इससे पूर्व मई- 2017 में रामगढ़ थाना पुलिस की कस्टडी में एक आरोपित जहानपुर निवासी सतनाम सिंह की मौत हो चुकी है। करीब ढाई-तीन साल पहले भी लक्ष्मणगढ़ थाना पुलिस की कस्टडी में एक आरोपित की मौत हो चुकी है। करीब सात-आठ साल पहले मालाखेड़ा थाना पुलिस की कस्टडी में भी एक आरोपित की मौत हुई।