रणथंभौर और कॉर्बेट सहित अन्य टाइगर रिजर्व की तुलना में सरिस्का में पशुधन का घनत्व अधिक है। सरिस्का और आसपास करीब 175 गांव हैं। इनमें से 26 गांव क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट, कोर क्षेत्र में हैं और शेष 146 गांव वन क्षेत्र से बाहर हैं। इनमें भैंस, गाय, बकरी और भेड़ सहित 10 हजार पशुधन के साथ राष्ट्रीय उद्यान के गांवों में मानव आबादी 1,700 से अधिक है। इन गांवों के शेष हिस्सों में मानव आबादी लगभग 6 हजार है, वहीं पशुधन की संख्या 20 हजार से अधिक है।
शोध में हुआ खुलासा सरिस्का में पदस्थापित रहे सीसीएफ जीएस भारद्वाज की ओर से बाघों के आहार पैटर्न पर किए गए एक शोध में बताया कि सरिस्का में वर्ष 2011 में बाघों के शिकार में पशुओं की प्राथमिकता करीब 19.4 प्रतिशत थी, जिसमें 2018 तक 77 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं बाघों की ओर सांभर का 13.6, चीतल का 3.6 और नीले बैल 2.4 फीसदी शिकार भोजन के लिए किया गया। शोध में यह भी बताया कि वर्ष 2018 से पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक 47 भैंस और 12 गायों (12) की मौत हुई।
सरिस्का में मानव वर्चस्व सरिस्का में मानव वर्चस्व पशुधन चराई का प्रमुख कारण रहा है। अध्ययन से पता चला कि बाघ ज्यादातर मवेशियों का शिकार करते हैं। शोध के सह-लेखक और सरिस्का के पूर्व डीएफओ हेमंत सिंह शेखावत का कहना है कि बाघ की ओर से शिकार का चयन विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। प्राकृतिक जंगलों में सांभर अपने शरीर के आकार और एकान्त प्रकृति के कारण सबसे पसंदीदा शिकार प्रजातियों में से एक है। जंगली शिकार की प्रजातियों का अच्छा घनत्व होने के बावजूद सरिस्का जैसे मानव प्रभुत्व वाले परिदृश्य में बाघ बड़े शरीर वाले वन्यजीवों के बजाय मवेशियों का शिकार करना पसंद करते हैं।
गांवों के विस्थापन की जरूरत सरिस्का में बसे गांवों को स्थानांतरित करने की तत्काल आवश्यकता है। इसका कारण है कि ये गांव सरिस्का में मानव-पशु संघर्ष की प्रवृति को जन्म दे सकता है। सरिस्का में पूर्व में बाघ एसटी-1 की मौत का कारण भी संभवत: यही रहा था, वहीं बाघ एसटी-11 की मौत का कारण भी मानव परिदृश्य ही रहा।