रणथंभौर में गत अप्रेल में दो शावकों की फिर से जांच के आदेश दिए गए हैं। इसका कारण रहा कि एक लैब की विसरा जांच रिपोर्ट में शावकों की मौत का कारण जहर देना माना गया है, जबकि पहले रणथंभौर प्रशासन ने विभागीय जांच में मौत का कारण किसी नर बाघ के संघर्ष को शावकों की मौत का कारण माना था। इसी तरह सरिस्का में गत मार्च में बाघ एसटी-11 की खेत में लगे फंदे में फंसने से हत्या हुई थी। हत्या के बाद विभागीय जांच की गई, जिसमें पांच अधिकारी व कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया था। इनमें से ज्यादातर का तबादला सरिस्का से दूसरे टाइगर रिजर्व में कर दिया गया। वहीं बाघ की हत्या के आरोप में खेत मालिक एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। बाद में वह न्यायालय से जमानत पर रिहा हो गया। बाघ एसटी-11 के शिकार को पांच महीने से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन अभी तक शिकार के पीछे के राज का पर्दाफाश नहीं हो पाया। यह स्थिति तो तब है जब बाघ की हत्या सरिस्का प्रशासन को सूचना दिए जाने से बहुत पहले ही हो गई। बाघ के शिकार के पीछे किसी बड़े शिकार गिरोह की आशंका भी जताई गई, लेकिन जांच की सुई उस दिशा में नहीं मुड पाई।
पहले भी कई शिकार गिरोह रह चुके सक्रिय पहले भी कई शिकार गिरोह सक्रिय रह चुके हैं। वर्ष 2005 से पूर्व यहां बाघों का पूरी तरह सफाया होने में अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिकार गिरोह से शिकारियों से तार जुड़े पाए जा चुके हैं। सरिस्का में शिकार की घटनाओं का सिलसिला यहीं नहीं थमा, बल्कि छोटे-बड़े शिकार के रूप में अब तक जारी है।
छह माह गुजरे, नहीं खुल पाया रहस्य सरिस्का में बाघिन एसटी-5 को गायब हुए छह महीने से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन सरिस्का प्रशासन फिलहाल यह बताने की स्थिति में नहीं है कि वह जिंदा या शिकारियों के हत्थे चढ़ चुकी है। इतना ही नहीं मामले की जांच भी धीमी गति से चलने से बाघिन के गायब होने में दोषी कर्मचारियों को अब तक चिह्नित नहीं किया जा सका है। कार्रवाई के नाम पर पिछले दिनों अकबरपुर रेंज में बाघिन के गायब होने का मामला दर्ज किया गया है। वहीं विभागीय जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है।