सरिस्का में बढ़ रहे गिद्ध सरिस्का में गिद्धों का कुनबा बढ़ना राहत की बात है। सरिस्का के करनाका बास क्षेत्र में गिद्धों का झुंड पिछले दिनों भैंस के शिकार के बाद सफाया करते दिखे। भर्तृहरि के आसपास की पहाड़ियों व सरिस्का के मैदानी क्षेत्र में गिद्धों के अलग-अलग झुंड नज़र आते हैं। सरिस्का में माइग्रेटरी प्रजाति के यूरेशियन ग्रिफोन और रेड हैडेड गिद्ध दिखाई देते हैं। यूरेशियन ग्रिफोन के पंख पर सफेद बाल होते हैं। जबकि रेड हैडेड गिद्ध का मुंह लाल होता है। सरिस्का में लंबी चोंच वाला गिद्ध सबसे ज्यादा पाया जाता है। गिद्धों के सरिस्का में कई रेस्टिंग प्वाइंट हैं। इनमें गोपी जोहरा, देवरा चौकी, टहला में मानसरोवर बांध, पाण्डुपोल, काली पहाड़ी के पास खड़ी चट्टानें शामिल हैं।
देश में 9 व प्रदेश में 7 प्रजाति के गिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में देश में 9 प्रजाति के गिद्ध हैं। इनमें 7 प्रजाति के गिद्ध राजस्थान में पाए जाते हैं। सरिस्का में भी इनमें से ज्यादातर प्रजातियों के गिद्धों की मौजूदगी रही है। जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन के लिए गिद्ध का होना जरूरी है। शिकार के बाद बचे मांस और अवशेष खाकर गिद्ध जंगल को साफ रखते हैं।
सरिस्का में गिद्धों की चार प्रजातियां सरिस्का में गिद्धों की 4 प्रजातियां मिलती हैं। इसमें इंडियन वल्चर, इन्हें बिल्ट वल्चर भी कहा जाता है। इसके अलावा इजिप्सियन, सिनेरियर व रेड हैडेड, इन्हें किंग वल्चर भी कहा जाता है। सभी प्रजाति के गिद्ध सरिस्का के हवामहल, टहला, कंकवाड़ी व क्रासका क्षेत्र में पाए जाते हैं।
बढ़ता प्रदूषण है गिद्धों की घटती संख्या का कारण पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि गिद्धों की संख्या में कमी का मूल कारण बढ़ता प्रदूषण, घटते जंगल, विषैले पदार्थ आदि हैं। इनके चलते गिद्धों का जीवन प्रभावित हुआ है। जबकि गिद्ध पर्यावरण हितैषी है और वे धरती पर संक्रमण रोकने का कार्य करते हैं। साथ ही स्वच्छता में सहयोगी हैं। मृत पशुओं की सफाई का कार्य गिद्धों व चील पर टिका है। पिछले कुछ समय से चील भी लुप्त प्राय: हो गई हैं।
सरिस्का में गिद्धों पर एक नजर इंडियन वल्चर — 300 इजिप्सियन — 100 सिनेरियर — 50 रेड हैडेड — 50