जानकारों की मानें तो इतने बड़े जिले में पर्याप्त मात्रा में ब्लड उपलब्ध होना चाहिए, जिससे हर व्यक्ति को जरूरत पडऩे पर बिना किसी देरी के उपलब्ध कराया जाए, लेकिन, जमीनी हालात इससे उलट ही है। सालों से सरकारी अस्पताल में प्लेट्लेट्स मशीन की आवश्यकता है, लेकिन इस पर किसी का
ध्यान नहीं है। डेंगू, मलेरिया व अन्य बीमारियों के मशीन प्लेट्लेट्स के लिए परेशान होना पड़ता है।
इसके अलावा सीएचसी में एक्स रे, सोनोग्राफी सहित अन्य जांच मशीनें खराब पड़ी हुई है। जिले में छह जगहों पर सोनोग्राफी मशीन हैं, इसमें से केवल दो जगह पर सोनोग्राफी मशीन चल रही है। इसके अलावा सभी जगहों पर एक्स रे मशीन खराब हैं। जांच लैब के हालात को इससे भी खराब हैं। इसके अलावा सीएचसी स्तर पर बनी नवजात यूनिट में भी ज्यादातर मशीनें खराब पड़ी हुई हैं। बीते दिनों सीएमएचओ की जांच में यह खुलासा हुआ है।
दिनों दिन हालात हो रहे हैं खराब बहरोड़ में प्राय देखने में आता है की सुविधाआें के अभाव में लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता हैं, लेकिन, यहां सुविधाएं पर उनके संचालन के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं है। इसके चलते कस्बे में हाइवे पर दानदाता द्वारा आधुनिक सुविधाओं युक्त अस्पताल बना कर देने के बाद सरकारी
तंत्र ने साल दर साल अस्पताल को बंद करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी है।
इसके चलते कस्बे में हाइवे पर दुर्घटनाग्रस्त लोगों को तुरन्त उपचार देकर उनकी जान बचाने के लिए खोले गए दुर्घटना अस्पताल की हालत साल दर साल बदतर होती जा रही है। अस्पताल को आज खुद के आपरेशन की जरूरत है। जिससे की अस्पताल का संचालन हो ओर लोगों को उसका लाभ मिल पाए। दुर्घटना अस्पताल आज एक क्लीनिक से भी बदतर हालत में पहुच गया हैं जिसे देख कर लगता है की दानदाताओं ओर भामाशाहो के द्वारा किए गए कार्यो की उपेक्षा करने के अलावा सरकारी अधिकारियो, स्वास्थय विभाग ओर क्षेत्र के राजनेताओं ने कोई काम नही किया।
सरकारी अस्पताल मे दुर्घटना ग्रस्त लोगों को उपचार मिल जाए ओर यहा ट्रोमा सैंटर का संचालन किया जाए तो क्षेत्र के लोगों को निजी अस्पतालो मे नहीं जाना पड़े जिसस लोगों को सुविधा का लाभ मिल पाए ओर अस्पताल बनाने वाले भामाशाहो का उद्द्ेश्य भी पूरा हो पाए तो सुविधाए जुटाने में ओर लोग भी आगे आए।
इलाज या खानापूर्ति
सोडावास, करनीकोट, हरसोरा, मुंडनवारा कलां, झझारपुर, ततारपुर के राजकीय अस्पतालों में मरीजों के हालात खराब हो रहे हैं। चिकित्सक कक्ष के साथ ही निशुल्क दावा काउंटर पर भी मरीजों की कतार लगी रहती है। सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। मरीजों को मजबूरी में बहरोड़, कोटपूतली या फिर अलवर जाना पड़ता है। ब्लॉक स्तर पर स्वाइन फ्लू, डेंगू की जांच की सुविधा नहीं है। चिकित्सकों को मरीजों के लक्षण नजर आते ही अलवर रैफर कर देते हैं।
जांच के लिए लगा बोर्ड, नहीं होती जांच मुंडावर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऑपरेशन थिएटर बना हुआ है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। महिलाओं को प्रथम
प्रसव के लिए सुविधाएं नहीं होने के कारण अलवर रेफर कर दिया जाता है। हर माह की 9 एवं 23 तारीख को अलवर या किशनगढ़ से मेडिकल टीम आकर ऑपरेशन थिएटर में नसबंदी शिविर लगाती है। मुख्य
मंत्री निशुल्क जांच योजना के तहत सीएससी में विभिन्न प्रकार की 28 जांचों का बड़ा बोर्ड लगा रखा है, लेकिन यहां केवल 10 ही जांच की जाती है।
रात को घर से बुलाने पड़ते हैं डॉक्टर
राजगढ़ कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में आपातकालीन में कोई चिकित्सक की व्यवस्था नहीं होने के कारण गम्भीर रूप से पीडि़त मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। रात को मरीज आने पर चिकित्सको उसके आवास से बुलाकर लाना पड़ता है। कई बार चिकित्सक के देर से आने पर हंगामा हो चुका है। चिकित्सालय में व्याप्त अव्यवस्थाओं को सुधारने के उच्चाधिकारियों की ओर से निर्देश दिए जा चुके हैं लेकिन उसके बाद भी समस्याएं ज्यो की त्यो बनी हुई है।
जिन अस्पतालों मंे मशीनें खराब हैं। उनको ठीक कराया जाएगा, कुछ जगह पर अस्पताल प्रभारी को मशीनों को काम में लेने के निर्देश दिए हैं। जिन जगहों पर गड़बड़ी मिल रही है, उन प्रभारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाये जाएंगे।
डॉ. एस एस अग्रवाल, सीएमएचओ, अलवर