बारिश नहीं होने का असर जिले की फसलों पर भी पड़ेगा। पानी के अभाव में फसलें चौपट हो जाएंगी।
दरअसल, जिले में भूजल से उत्पादित पानी में से ९५ प्रतिशत का उपयोग सिंचाई में होता है। बाकी ५ प्रतिशत पानी पीने व फैक्ट्रियों में काम आता है। भूजल विभाग के अनुसार जिले में ज्यादातर इलाका चट्टानी है। यहां जमीन के भीतर भी चट्टानें हैं। एेसे में यहां पानी मिलने की उपलब्धता भी काफी कम है। एेसे में भूजल स्तर के गिरने एवं पानी की उपलब्धता का अभाव का खेती पर भी असर पड़ेगा।
बारिश के नहीं होने से गर्मियों में शहर में पीने के पानी के लाले पड़ सकते हैं। यहां जलदाय विभाग पहले ही मान चुका है कि शहर में पानी नहीं बचा है। विभाग ने इसकी पूर्ति के लिए जयसमन्द के पास १५ नई बोरिंगें लगवार्ई। पिछले साल जयसमन्द में पानी था तो बोरिंगों ने भी पानी उगला। इस बार जयसमन्द के खाली रहने एवं आस-पास का भूजल स्तर गिरने से आगामी गर्मियों में फिर से जल संकट बन सकता है।
बारिश की कमी से खरीफ की फसलों की उत्पादकता प्रभावित होना शुरू हो गई है। कृषि विभाग के अनुसार बारिश की कमी से अब तक जिले में फसलों को २० से २५ प्रतिशत का नुकसान हो चुका है। जिले में इस बार खरीफ की फसल की बुवाई भी लक्ष्य से कम हुई है। विभाग ने इस बार ३ लाख ९६ हजार हैक्टेयर में खरीफ की बुवाई का लक्ष्य रखा , जिसकी जगह केवल ३ लाख ६९ हजार २२० हैक्टेयर में फसल की बुवाई हुई है।
भूजल विशेषज्ञों का मानना है कि जिले में पेयजल व सिंचाई के लिए हर साल १५०० एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी की आवश्यकता पड़ती है। औसत के बराबर बारिश होने पर लगभग ७५० एमसीएम पानी जमीन के भीतर जाता है। इसके अलावा बिना मानसून की बारिश से भी लगभग २०० एमसीएम पानी जमीन में समाता है। इस हिसाब से हर साल लगभग ९५० एमसीएम पानी जमीन में जाता है और करीब १५०० एमसीएम का दोहन होता है। यानि लगभग ५५० एमसीएम पानी जमीन से अतिरिक्त निकालना पड़ता है। इस साल बारिश के आधा होने से जमीन में पानी को कम जाएगा, वहीं दोहन उतना ही यानि १५०० एमसीएम रहेगा। एेसे में जमीन का सीना छेद जबरन प्यास बुझानी पड़ेगी।
रैणी, राजगढ़, मालाखेड़ा, लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, टपूकड़ा, तिजारा, किशनगढ़बास।
ये हैं खरीफ की फसलें: कपास, बाजरा, अरहर, ग्वार, ज्चार, तिल, मक्का, मूंगफली आदि। ये है भूजल का गणित
जिले में बारिश का औसत – 555.55 एमएम
औसत बारिश से जमीन में जाता है जल – 750 एमसीएम
हरसाल पानी का दोहन – 1500 एमसीएम
शहर में प्रतिदिन पेयजल की जरूरत – 36 एमएलडी
निरंजन माथुर, वरिष्ठ भूजल, वैज्ञानिक भूजल विभाग, अलवर