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सिलीसेढ़ झील में मछुआरों के जाल में फंस रही पर्यटकों की नाव, कोई नहीं दे रहा ध्यान, कभी भी हो सकता है हादसा

locationअलवरPublished: Feb 04, 2019 04:29:23 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

सिलीसेढ़ झील में मछुआरे अपने निर्धारित समय से अधिक जाल बिछा रहे हैं, ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।

Siliserh Lake : Boats Are Trapping Into Net of Fisherman

सिलीसेढ़ झील में मछुआरों के जाल में फंस रही पर्यटकों की नाव, कोई नहीं दे रहा ध्यान, कभी भी हो सकता है हादसा

सिलीसेढ़ झील का लुत्फ उठाने आ रहे पर्यटकों की जान को खतरा होने लगा है। मछुआरों का जाल शाम को जल्दी लगाने और सुबह देर से उठाने के कारण यह परेशानी होने लगी है। इस जाल में कई बार पर्यटकों की नाव उलझती है। बोटिंग व मछली पालन के ठेके से सरकार को एक साल में करीब डेढ़ करोड़ रुपए का राजस्व मिल रहा है लेकिन, यहां पर पर्यटकों की सुविधाओं में कोई विस्तार नहीं किया जा रहा है। मछली पालन करने वाले को कोई ठिकाना तक नहीं मिल रहा। जिसके कारण उनको कभी इस छोर में तो कभी दूसरे छोर में रात गुजारनी पड़ती है।
बोटिंग पूरी नहीं हो रही

मछली पालन करने वाले ठेकेदार एक महीने में करीब दस से 15 दिन जाल डालते हैं। जाल पूरे पानी में डाला जाता है। शाम को करीब चार से पांच बजे बाद जाल डालना शुरू करते हैं। सुबह करीब 11 से 12 बजे तक हटाते हैं। इस बीच में सिलीसेढ़ आने वाले पर्यटकों को नौकायान का लुत्फ नहीं मिल पा रहा है। कई बार पानी में नाव लेकर जाते हैं तो नाव जाल में उलझ जाती है। जिससे खतरा रहता है।
मछली पालन का ठेका एक करोड़ रुपए सालाना

इस समय सिलीसेढ़ झील में मछली पालन का ठेका करीब एक करोड़ रुपए सालाना है। इसके अलावा 40 लाख रुपए सालाना बोटिंग का ठेका है। इस तरह सरकार के खजाने में मछली पालन व नाव के ठेके से करीब 1.40 करोड़ रुपए जाता है। लेकिन यहां पर्यटकों की सुविधाओं का विस्तार कतई नहीं किया जा रहा है।
सिंघाड़े से किसान की उपज

सिलीसेढ झील के ऊपरी हिस्से में सिंघाड़े की भी खेती होती है। गर्मी के दिनों में पानी कम होता जाता है। जिसके कारण किनारों की तरफ बड़ी घास हो जाती है। जिससे मछली पालन करने वाले और बोटिंग करने वाले दोनों को दिक्कत आती है। झील में सैकड़ों की संख्या में मगरमच्छ भी हैं। सर्दियों के दिनों में मगरमच्छ जहां धूप के लिए बाहर आते हैं वहां पर मछली के ठेकेदार के मछुआरों का आशियान बना रखा है। जिससे मगरमच्छों की दिनचर्या प्रभावित होती है। उधर, मछली पालन के ठेकेदार का कहना है कि बड़ा पैसे का ठेका है। मोटा नुकसान हो रहा है। एक तरफ घास उग आई। दो महीने देरी से ठेका हुआ। अब जाल लगाने में भी दिक्कत हो रही है। इस तरह आगे कोई ठेका लेने में रुचि नहीं लेगा।
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