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स्वामी जी के आने से मिटटी का टीला बन गया , विवेकानंद चौक

locationअलवरPublished: Jan 18, 2020 12:42:29 pm

Submitted by:

Jyoti Sharma

 
स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा के लिए संस्था ने खर्च में की थी कटौती,9100 रुपए में थानागाजी से बनी थी विवेकानंद जी की प्रतिमाअलवर शहर के विवेकानंद चौक पर स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा लगवाने का श्रेय राजर्षि अभय समाज को जाता है। यह संस्था अलवर शहर की कला एवं संस्कृति का प्रचार प्रसार करने वाली संस्था होने के साथ साथ धार्मिक एवं सामाजिक सरोकार से सदैव जुडे रहने वाली संस्था है।

स्वामी जी के आने से मिटटी का टीला बन गया , विवेकानंद चौक

स्वामी जी के आने से मिटटी का टीला बन गया , विवेकानंद चौक

ऐसे ही सामाजिक सरोकार के तहत राजर्षि अभय समाज ने अपने स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा लगाने का निश्चय किया। संस्था के पास फंड नहीं था। 1967 में संस्था के अध्यक्ष पद पर जाने माने प्रतिष्ठित व्यापारी संपतराम अग्रवाल का चुनाव किया गया। अग्रवाल ने अपने बेहतर प्रबंधन से राजर्षि अभय समाज के अनावश्यक खर्चो पर रोक लगाई एवं संस्था के लिए सुरक्षित कोष का प्रावधान किया। उनकी अध्यक्षता में ही विवेकानंद की प्रतिमा के लिए 10000 का बजट पारित किया गया। मूर्ति लगवाने के लिए तत्कालीन युवा वर्ग से गिर्राज जैमिनी एवं वरिष्ठ रंगकर्मी एवं उपाध्यक्ष पंडित प्रीतम चंद शर्मा को जिम्मेदारी सौंपी गई। उस समय मंत्री फूलचंद मुदगल एव निदेशक पद श्यामलाल सक्सेना ने भी सहयोग किया।
टीले पर स्वामी जी करते थे विचरण

स्वामी जी की प्रतिमा 9100 रुपए में थानागाजी से बनवाई गई। कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई एवं प्रतिमा लगवाने का विचार किा गया। राधेश्याम भार्गव ने बताया कि वर्तमान में अशोका टाकीज के पास गोंिवंद सहाय गुप्ता के मकान में स्वामी ठहरे थे, उस समय वहां एक टीला था। जिस पर स्वामी जी ने कई दिनों तक विचरण किया। अत: वर्तमान में जो निकट ही चौराहा है उस पर प्रतिमा लगवाई जानी चाहिए। सभी ने नगर परिषद प्रशासन को पत्र लिखा गया एवं विवेकानंद जी की प्रतिमा जिसकी लागत 9100 रुपए आई, नगर परिषद को सौंप दी गई। चौक पर 1970 में लगी थी प्रतिमानगर परिषद प्रशासन ने तत्कालीन केंद्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री जगन्नाथ पहाडिया के करकमलों से 1 अगस्त 1970 को मूर्ति का अनावरण करवाया। जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ राजर्षि अभय समाज संस्था के अन्य पदाधिकारी शामिल हुए। इसके बाद इस चौराहा को विवेकानंद चौक और विवेकानंद सर्किल के नाम से जाना जाने लगा।
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