जिस कमरे में रुके, वो अब भी सुरक्षित- लाला गोविंद सहाय के पौत्र राजाराम मोहन गुप्ता बताते हैं कि उनके मकान में आज उस कमरे को सुरक्षित रखा गया है। जहां वह बैठकर धर्म चर्चा करते थे यहां एक मंदिर का रूप दिया गया है। इस कमरे और इसके भवन में आज तक कोई परिवर्तन नहीं किया गया जिससे कि उनकी यादें सुरक्षित रह सकें। देश-विदेश से आने वाले स्वामी जी के अनुयाई यहां पर शोध भी करते हैं और यहां आने के बाद शांति भी महसूस करते हैं।
शिकागो से भी करते रहे पत्र व्यवहार- स्वामी विवेकानंद को अलवर के साथी इतने पसंद आए कि शिकांगो जाने के बाद भी वह लगातार पत्र-व्यवहार से करते रहे । उन्होंने लाला गोविंद सहाय जी को इस दौरान अनेक पत्र लिखे जिनमें से एक पत्र आज भी इस परिवार के पास सुरक्षित हैं।
मिट्टी का टीला आज बन गया विवेकानंद चौक स्वामी विवेकानंद अलवर प्रवास के दौरान अशोका टॉकीज के पास बने एक मिट्टी के टीले पर प्रवचन देते थे। आज इसी मिट्टी के टीले को विवेकानंद चौक के नाम से जाना जाता है। यहां पर शिकागो में प्रवचन देने की मुद्रा में स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा लगाई गई है। राजर्षि अभय समाज संस्था की ओर से 1970 में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा की स्थापना की गई। आज इस चौराहे की पहचान इसी नाम से होती है।
कंपनी बाग में भी बसी हुई है यादें आज जिस स्थान को कंपनी बाग के नाम से जाना जाता है पहले उसे पुरजन विहार के नाम से जाना जाता था । यहां पर स्वामी जी की स्मृतियां आज भी बसी हुई हैं ।
स्वामी विवेकानंद अलवर प्रवास के दौरान जब सामान्य चिकित्सालय के पास स्थित रहने वाले एक बंगाली डॉक्टर के घर रुके तो इस दौरान वह घूमते घूमते कंपनी बाग पहुंच जाते थे। वहां पर नियमित प्रवचन होते थे । जिन्हें सुनने के लिए लोग काफी उत्सुक रहते थे यही वजह थी है कि आज भी कंपनी बाग में महिला मंडली रा भजन सत्संग होते हैं।
रेल से यात्रा कर अलवर पहुंचे स्वामी-
इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद 25 फरवरी 1891 में रेल से यात्रा करते हुए अलवर स्टेशन पर उतरे और घूमने लगे। पैदल चलते चलते राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय में ठहरने की इच्छा जताई। स्वामी जी बंगाली बोलते थे । उस समय बंगाली सर्जन डॉक्टर गुरु चरण ने उन्हें अपने यहां ठहराया और अपने मित्र मौलवी साहब से उनका परिचय करवाया।
डॉक्टर गुरुशरण का निवास जिसमें स्वामी जी ठहरे थे । वह वर्तमान में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का बंगला है जो सूचना केंद्र के पास है। इसके बाद स्वामी जी के साथ धर्म चर्चा और गूढ़ रहस्य की बातें होने लगी। प्रार्थना सभा भक्ति गीत प्रतिदिन होने लग गए और सभी ने एक मित्र मंडली बना ली। स्वामी जी बंगाली गीतों को मधुर स्वर लहरी से गाते और उसकी व्याख्या भी करते थे। इसलिए नौजवानों को कंठस्थ याद भी हो जाते थे। युवाओं की एक टोली भी बन गई थी जो स्वामी जी के साथ शहर के परकोटे में गाती व बजाती और धर्म चर्चा करती रहती थी।राजा को बताया मूर्ति पूजा का महत्वस्वामी विवेकानंद के अलवर प्रवास के दौरान की एक घटना आज भी स्मृतियों में शेष है।
स्वामी जी के प्रवास की जानकारी दीवान कर्नल रामचंद्र शर्मा तक पहुंची वे स्वामी जी का प्रवचन सुनकर खुश हुए। उन्होंने महाराजा मंगल सिंह को कहा कि वह भी एक बार स्वामी विवेकानंद से मिले। उन्होंने स्वामी जी को महल में बुलाया धर्म चर्चा हुई । इस दौरान मूर्ति पूजा पर दोनों में वैचारिक मतभेद हुए। महाराज मंगल सिंह मूर्ति पूजा का विरोध कर रहे थे। इसी दौरान स्वामी जी ने बड़े कक्ष में लगे हुए चित्र को देखा जो कि पूर्वज महाराजाओं के थे उन्होंने दरबारियों से कहा कि इस चित्र पर थूक दो यह बात सुनकर राजा को बुरा लगा । तब स्वामी जी ने कहा की यह तो मात्र चित्र है आप इसका अनादर नहीं कर सकते तो मूर्ति पत्थर से बने या मिट्टी से उसमें भगवान का रूप होता है उसका अनादर नहीं करना चाहिए।