
अलवर. जिला क्षेत्र के गांव बीधोता, वीरपुर, लाकी, खेड़ली, कुंडला, देवती, नरवास, मंडावरी, नाथलवाडा, जोनेटा, सहित अन्य कई गांवों की पहाड़ियों की झाड़ियां में इन दिनों लगने वाला फल लाल रंग के खट्टे-मीठे बेर से लदकद हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र में उगी झाडि़यां दूर से ही लाल चुनर ओढ़े नजर आती है।
इन बेर का स्वाद भी कुछ खट्टा-मीठा होने से अच्छा लगता है। औषधि गुना से भरपुर बेर महिलाओं व बच्चों की पहली पसंद होने के साथ ही ग्रामीणों की आमदनी का भी अच्छा जरिया है। पहाड़ी क्षेत्रों में पनपने वाली झाडि़यों के लगने वाले बेर अब ग्रामीणों के लिए आमदनी का जरिया भी बन रहे हैं। खट्टे-मीठे लाल रंग के बेर को खाने के लिए विशेषकर बच्चे व महिलाएं लालायित रहते हैं। गांवों में ग्रामीण महिलाओं से लेकर पुरुष भी झाड़ियों के बेर तोड़कर इकट्ठा करते देखे जा सकते हैं। लोग बेरों को बाजार में बेचकर हाथ खर्ची भी जुटा रहे हैं।
पोष्टिक तत्वों से भरा है बेर
चिकित्सा विशेषज्ञों आदि ने बताया कि झाड़ियों पर लगने वाला बेर का फल पोष्टिक तत्वों से पूर्ण है। इसके अंदर विटामिन, खनिज लवण व शकरा आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके गुण सेब से कम नहीं है। बेर के फल में स्टार्च, शकरा, कैल्शियम, फास्फोरस व लोहतत्व सहित विटामिन तो होता ही है, इसके अलावा बैर के फलों में अम्लता भी पाई जाती है। खाने में स्वादिष्ट वह औषधीय गुणों से भरपूर पके हुए बेर स्वास्थ्य के लिए लाभदयी फल है। शबरी के बेर का वर्णन तो रामायण में सर्व विदित है। वेद पुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इसका महत्व बताया है। इसका वनस्पतिक नाम जिजिफस मोरीसियाना है। इन दिनों महिलाओं व बच्चों के समूह झाड़ियों के इर्द-गिर बेर तोड़ते व खाते हुए देखे जा सकते हैं। हल्के-खट्टे व मीठे स्वाद वाले ये लाल बेर हर किसी के मन को भाते हैं और खाने को लालायित रहते हैं।
लाल बैर लोगों के हाथ खर्ची का भी बना जरिया
बारिश की ऋतु समाप्त होने व सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही झाड़ियों पर ये बैर आना शुरू हो जाते हैं। बिना पानी व किसी मेहनत के पहाड़ी क्षेत्रों व नदी नालों के किनारे नम भूमि में पनपने वाली झाड़ियों के लगने वाले बेर अब ग्रामीणों के लिए आमदनी का जरिया बन रहे हैं।
Published on:
10 Nov 2024 08:01 pm
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