अलवर

होली पर स्वांग निकलने की सालों पुरानी है संस्कृति, नानकशाही स्वांग की परंपरा

धर्म-परंपरा : पहल सेवा संस्थान 17 सालों से कर रहा है आयोजन

अलवरMar 19, 2024 / 11:54 pm

mohit bawaliya

होली पर शहर में निकाले जाने वाले स्वांग की फाइल फोटो।

देश भर में अलग अलग जगहों पर होलीे के मौके पर कुछ ना कुछ परंपराएं व संस्कृति है जो आज भी जीवित है। होली के ये आयोजन होली को यादगार बना देते हैं। अलवर में भी होली के अवसर पर खासतौर से नानकशाही स्वांग निकाला जाता है जो कि यहां की स्वांग की परंपरा को बचाए हुए हैं। स्वांग निकालने की परंपरा राजशाही समय से चली आ रही हैं। जिसे पहल सेवा संस्थान ने आज भी बचाया हुआ हैं। संस्था की ओर से 17 सालों से होली से पहले यह स्वांग निकाला जाता है। जिसमें होली की मौज मस्ती के साथ साथ सामाजिक संदेश भी दिया जाता है।

स्वांग के डायलॉग होते है खास

सेठ सेठानी के स्वांग में एक मुनीम अपनी सुंदर सेठानी को ऊंट पर बैठाकर उगाही करने निकलता है और इसी दौरान एक फकीर सेठानी पर मोहित हो जाता है। सेठ और फकीर के डायलॉग ही इस स्वांग का मुख्य आकर्षण होते हैं। संस्था के अध्यक्ष जितेंद्र गोयल ने बताया कि यह स्वांग 23 मार्च को निकाल जाएगा।

पहले निकलते थे दस स्वांग, अब बचा है एक
इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि अलवर में स्वांग की परंपरा करीब डेढ़ सौ साल पुरानी हैं। पहले कई तरह के स्वांग निकला करते थे जिसमें भील – भीलनी, शंकर पार्वती, लुहार, बंजारा, सिरकटा, बारात का स्वांग आदि निकलते थे जो कि अब खत्म हो चुके हैं, लेकिन अब एक सेठ सेठानी का स्वांग आज भी निकल रहा है। यह स्वांग नागौर से आया है। वर्ष 1978 से 2009 तक अलवर में पांच सदस्यीय संस्था शहर में सेठ सेठानी का स्वांग निकालती थी। इसमें संयोजक हरिशंकर गोयल, मास्टर राजेंद्र, मास्टर प्यारेङ्क्षसह व मोहनलाल शामिल थे। वह बताते हैं कि सैनी समाज की ओर से इसको अपनाया गया। वह बताते हैँ कि पहले शहर में 317 कुएं थे। यह स्वांग सभी कुओं पर जाता था और यहां पर ठंडाई आदि का आयोजन होता था।
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