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यहाँ खण्डऱ बन रही है ऐतिहासिक प्राचीन बावडी

locationअलवरPublished: Dec 03, 2017 12:32:33 pm

Submitted by:

Rajiv Goyal

प्राचीन काल में पानी का एक अच्छा स्रोत बावडी प्रशासनिक लापरवाही एवं आमजन की जागरूकता के अभाव में अपनी पहचान खो रही है।

there is no care of Historical Antique Bawdy
राजगढ के अलवर मार्ग स्थित बावड़ी गांव की प्राचीन एवं ऐतिहासिक बावडी बिना सारसंभाल के खण्डहर में तब्दील होती जा रही है। इस ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए बावडी का जीर्णोद्वार कराए जाने की ग्रामीणों ने मांग की है।
ग्रामीणों ने बताया कि बावड़ी के अंदर एक कुआँ तथा करीब चार दर्जन दरवाजे बने हुए है। बावड़ी व आस-पास के क्षेत्रों के लोग स्नान करने, तैरने आते थे तथा पानी भरने के लिए महिलाओं की भीड़ लग जाती थी। लेकिन करीब तीस वर्ष पूर्व भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण बावड़ी का पानी सूख गया। समय के साथ ही बावड़ी की देखरेख नहीं होने के कारण जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है। ग्रामीणें ने बताया कि सन् 1995 में तेज बारिश का पानी पहाड़ों से गांव में होकर बावड़ी में आ गया। पानी के साथ मिट्टी भी बावड़ी में जाकर जमा हो गई। इसी के बाद से बावड़ी के दिन बुरे शुरू हो गए। बावड़ी के अंदर जगह-जगह रेत जमा होने के साथ ही जगह-जगह से टूटन शुरू हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार इस प्राचीन एवं ऐतिहासिक धरोहर का जीर्णाेद्वार कराए तो हम सभी प्रकार का सहयोग करने का तैयार है। जिससे बावड़ी की सूरत संवारी जा सके। यह विशालकाय बावड़ी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है।

पांच सौ साल पुरानी है बावड़ी


ग्रामीण अनूप मीना कि बावड़ी गांव में बनी प्राचीन व ऐतिहासिक बावडी करीब पांच सौ वर्ष पुरानी है। यह बावड़ी ग्रामीणों की प्यास बुझाती थी। महिलाएं व पुरूष नहाने धोने के साथ ही पानी पीने के लिए उमड़ा करते थे। करीब तीस वर्ष पूर्व बावड़ी में पर्याप्त पानी भरा हुआ था। भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण यह बावड़ी सूख गई है। अब कोई भी ग्रामीण बावड़ी को देखने नहीं जाता है।

बावड़ी के नाम से पड़ा गांव का नाम


बावड़ी गांव के बुजुर्ग मांगेलाल मीना, शिवराम का कहना है कि प्राचीन बावडी के नाम से ही गांव का नाम बावड़ी रखा गया है। सभी लोग राजगढ़ -अलवर मार्ग पर हमारे गांव को बावड़ी के नाम से जानते है। यह बावड़ी पेयजल स्रोत्र का मुख्य साधन थी। बावड़ी के कुएं के पास गोमुख लगा हुआ था। जिसमें से होकर पानी भरा जाता है। अब बावड़ी सहित आस-पास का पूरा क्षेत्र जर्जर हो चुका है। रामस्वरूप मीना, किशन लाल मीना का कहना है कि एेतिहासिक बावड़ी मरम्मत नहीं होने के कारण अपना अस्तित्व खोती जा रही है। इस ओर न तो सरकार ही ध्यान दे रही है और न ही आमजन इस के प्रति जागरूक है।
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