ये अधिकारी बन गए साल 2008 में सडक़ बनी। उस समय इस सडक़ की मॉनिटरिंग करने वाले दो जेईन तो एक्सईएन बन गए हैं। इसके अलावा एक एक्सईएन मुख्य अभियंता बन चुके हैं। खास बात यह है कि इनमें से कुछ अधिकारी अभी तक अलवर यूआईटी में ही कार्यरत हैं। इसके बावजूद भी ठेकेदार को सडक़ का भुगतान नहीं हो रहा है।
पहले दो करोड़ में बनी अब 7 करोड़ की सडक़ यह सडक़ पहले करीब दो करोड़ रुपए में बनी। अच्छी खासी सडक़ को अब तोडकऱ सात करोड़ रुपए में बनाने का कार्य चल रहा है। जितना सडक़ को तोडऩे में मशक्कत करनी पड़ रही हैं उससे आधी भी उसे बनाने में नहीं करनी पड़ेगी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुरानी सडक़ अच्छी खासी बनी हुई थी। खुद इंजीनियरों का कहना है कि इसी रोड पर डामर की सडक़ बनाई जाती तो आधे से भी कम बजट में अच्छी सडक़ बन जाती।
कई बार शिकायत दी हमने भुगतान को लेकर कई बार शिकायत दी हैं। पूरी सडक़ अच्छे से बनाई है। करीब 25 लाख का भुगतान अभी तक रोक रखा है। कोई कारण भी नहीं है।
दिनेश चन्द गुप्ता, ठेकेदार
दिनेश चन्द गुप्ता, ठेकेदार
कराएंगे भुगतान काफी पुराना मामला है। जिसकी जानकारी करके बताया जा सकता है। वैसे बिना किसी कारण के भुगतान नहीं मिला है तो तुरन्त दिलाने का प्रयास किया जाएगा।
अरुण मेहता, मुख्य अभियंता, यूआईटी अलवर
अरुण मेहता, मुख्य अभियंता, यूआईटी अलवर