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अलवर यूआईटी ने ठेकेदार के साथ किया ऐसा सितम, 10 साल से होना पड़ रहा है परेशान

अलवर यूआईटी की ओर से 2008 के बाद से ही एक ठेकेदार को इतने लाख का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

अलवरMay 12, 2018 / 04:31 pm

Prem Pathak

अलवर. बिना किसी ठोस कारण के किसी ठेकेदार का 10 साल से 25 लाख रुपए का भुगतान रोक कर रखा जाए तो सवाल उठने तो लाजिमी हैं। जबकि इतने सालों में उस समय के जेईएन तो एक्सईएन और एक्सईएन मुख्य अभियंता बन गए। हम बात कर रहे हैं कटीघाटी से भवानीतोप तक 2008 में बनाई गई सडक़ की। जिसके ठेकेदार को अभी तक 25 लाख का भुगतान नहीं हुआ है। अब तो उस समय की सडक़ का अस्तित्व ही खत्म होने जा रहा है। पुरानी दो करोड़ की सडक़ को उखाड़ कर दुबारा से सात करोड़ में बनाने का कार्य शुरू हो गया है। मतलब कुछ दिनों बाद तो पुरानी सडक़ का सबूत ही खत्म हो जाएगा। इसके बाद ठेकेदार को भुगतान लेने में और अधिक मशक्कत करनी पड़ सकती है। जबकि ठेकेदार दिनेश चन्द गुप्ता ने कई बार यूआईटी के अधिकारियों को लिखित में शिकायत की है। यूआईटी के अधिकारियों से बातचीत की तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिरत करते हुए कहा यदि ऐसा है तो जल्दी से जल्दी भुगतान कराया जाएगा।
ये अधिकारी बन गए

साल 2008 में सडक़ बनी। उस समय इस सडक़ की मॉनिटरिंग करने वाले दो जेईन तो एक्सईएन बन गए हैं। इसके अलावा एक एक्सईएन मुख्य अभियंता बन चुके हैं। खास बात यह है कि इनमें से कुछ अधिकारी अभी तक अलवर यूआईटी में ही कार्यरत हैं। इसके बावजूद भी ठेकेदार को सडक़ का भुगतान नहीं हो रहा है।
पहले दो करोड़ में बनी अब 7 करोड़ की सडक़

यह सडक़ पहले करीब दो करोड़ रुपए में बनी। अच्छी खासी सडक़ को अब तोडकऱ सात करोड़ रुपए में बनाने का कार्य चल रहा है। जितना सडक़ को तोडऩे में मशक्कत करनी पड़ रही हैं उससे आधी भी उसे बनाने में नहीं करनी पड़ेगी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुरानी सडक़ अच्छी खासी बनी हुई थी। खुद इंजीनियरों का कहना है कि इसी रोड पर डामर की सडक़ बनाई जाती तो आधे से भी कम बजट में अच्छी सडक़ बन जाती।
कई बार शिकायत दी

हमने भुगतान को लेकर कई बार शिकायत दी हैं। पूरी सडक़ अच्छे से बनाई है। करीब 25 लाख का भुगतान अभी तक रोक रखा है। कोई कारण भी नहीं है।
दिनेश चन्द गुप्ता, ठेकेदार
कराएंगे भुगतान

काफी पुराना मामला है। जिसकी जानकारी करके बताया जा सकता है। वैसे बिना किसी कारण के भुगतान नहीं मिला है तो तुरन्त दिलाने का प्रयास किया जाएगा।
अरुण मेहता, मुख्य अभियंता, यूआईटी अलवर

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