कभी सपने में भी नहीं सोचा पत्रिका से बातचीत के दौरान ऊषा ने कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि उन्हें यह सम्मान मिल पाएगा। ऊषा चौमर अपने जीवन में बदलाव के साथ कई महिलाओं के जीवन में बदलाव ला चुकी हैं। अब वो मैला ढोने को छोड़कर आचार, जूट के थेले, पापड़ आदि बनाने का कार्य करती हैं। इससे कई महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
10 साल की उम्र में हो गई थी ऊषा की शादी ऊषा चौमर का विवाह 10 साल की उम्र में हुआ था। मैला ढोने के कारण उन्हें अछूत के तौर पर देखा जाता था। ऊषा की जिंदगी में यह बदलाव तब आया जब वे वर्ष 2003 में सुलभ इंटरनेशनल संस्था से जुड़ीं। सुलभ इंटरनेशनल से जुडकऱ उन्होंने न केवल मैला ढोने के कार्य का विरोध उसे छोड़ा, बल्कि लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित भी किया। उन्हें ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ साउथ एशियन स्टडीज (बीएएसएएस) के सालाना सम्मेलन में स्वच्छता और भारत में महिला अधिकार विषय पर संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।