जिस तरह से विवाह के दौरान शादी से पहले वर को हल्दी लगाने, कंगन डोरा बांधने, भात भरने और बारात निकलने की परंपराएं होती है, उन सबका इस महोत्सव में पालन किया जाता है।
हिंदू परंपरा में जब भी शादी होती है तो वर व वधू भगवान को साक्षी मानकर विवाह करते हैं। भगवान को साक्षी मानकर फेरे लिए जाते हैं। लेकिन जगन्नाथ व जानकी मैया के विवाह उत्सव की सबसे प्रमुख बात यह है कि यहां भगवान के विवाह का साक्षी भक्त होते हैं। जब वरमाला होती है तो हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस महोत्सव को देखने पहुंचते हैं।
वरमाला में पहुंचते हैं श्रद्धालु रथयात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण होता है रूपबास में स्थित रूपहरि मंदिर में आयोजित होने वाला वरमाला महोत्सव। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान जगन्नाथ व जानकी मैया का विवाह होता है। इस वरमाला को देखने के लिए शाम से ही भक्त मंदिर में एकत्रित होने लगते हैं देर रात तक इंतजार करते हैं।
वरमाला का यह दृश्य बहुत ही मनोहारी होता है। जैसे ही भगवान जगन्नाथ व जानकी का विवाह होता है चारों तरफ जयकारे गूंजने लगते हैं। इस एकादशी को देवशयन एकादशी कहते हैं। इसके बाद चार माह तक देव सो जाते हैं। विवाह आदि शुभ कार्य बंद हो जाते हैं।
दूल्हा रूप में संजते हैं भगवान जगन्नाथ भगवान जगन्नाथ प्रतिवर्ष आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की नवमी को इंद्र विमान रथ में विराजमान होकर शाम को इंद्र विमान में सवार होकर रूपबास स्थित मेला स्थल के लिए रवाने होते है। कृष्णमयी भगवान जगन्नाथ दूल्हा रूप में संज संवरकर जब भारी भरकम इंद्र विमान में विराजमान होते हैं तो उनके इस सुंदर रूप के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ मच जाती है।
इसलिए घर की महिलाएं भगवान की नजर भी उतारती हैं। चारों तरफ जय-जय जगन्नाथ के जयकारे लगते हैं। भगवान जगन्नाथ पुराना कटला स्थित जगन्नाथ मंदिर से भारी भरकम लवाजमे के साथ बारात को लेकर रवाना होते हैं।