राजगढ़ वन रेंज के दो कर्मचारी बाघ की मॉनिटरिंग में दिन-रात जुटे हैं। वहीं सरिस्का प्रशासन ने दो कर्मचारियों को बाघ के पीछे लगाया हुआ है। सरिस्का बाघ परियोजना में रणथंभौर से पुनर्वासित पहली बाघिन एसटी-2 से जन्में एसटी-13 को इन दिनों सरिस्का के बजाय राजगढ़ वन क्षेत्र खूब भा रहा है।
करीब तीन साल की उम्र का यह बाघ आठ महीनों से ज्यादा समय से राजगढ़ वन क्षेत्र में घूम रहा है। सघन वन क्षेत्र होने के कारण बाघ-13 के लिए राजगढ़ वन क्षेत्र अनुकूल रहा है। यहां नील गाय व अन्य मवेशियों के चलते बाघ को भोजन व पानी की समस्या भी नहीं है। यही कारण है कि एसटी-13 राजगढ़ वन क्षेत्र के रैणी, सुरेर होते हुए दौसा जिले की सीमा भी छू चुका है।
एसटी-13 के कारण वन विभाग राजगढ़ क्षेत्र की परेशानी बढ़ गई है। रेंज में वर्तमान में 13 फोरेस्ट गार्ड हैं। वन क्षेत्र की रक्षा, विकास कार्य, मुख्यमंत्री जलस्वावलंबन सहित करीब 16 से ज्यादा दायित्व वनकर्मियों को निभाने पड़ते हैं।
दो फोरेस्ट गार्ड बाघ की मॉनिटरिंग में लग रहते हैं। एेसे में वन विभाग के कार्य पूर्ण करने में परेशानी आ रही है। राजगढ़ एसीएफ राजीव लोचन पाठक का कहना है कि रेंज में स्टाफ कम होने से विभागीय काम में परेशानी तो आती है।
ट्रंक्यूलाइज के प्रयास विफल बाघ एसटी-13 को वापस सरिस्का में लाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने भी खूब प्रयास किए। बाघ को टं्रक्यूलाइज करने के दो बार प्रयास किए गए, लेकिन दोनों ही प्रयास विफल रहे। सरिस्का प्रशासन की चिंता है कि सरिस्का से राजगढ़ वन क्षेत्र के बीच मेगा हाईवे तथा रेलवे लाइन पड़ती है। एेसे में बाघ के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा रहता है।
सरिस्का में रहता है टेरिटरी का झगड़ा वन्यजीव प्रेमी एडवोकेट संजीव कारगवाल का कहना है कि बाघ एसटी-13 के सरिस्का से बाहर जाने का कारण उसकी उम्र कम होना है। सरिस्का में बाघों के बीच टेरिटरी का विवाद रहता है। एेसे में कम उम्र के टाइगर के लिए सरिस्का में अपनी टेरिटरी बनाना आसान नहीं होता। वयस्क बाघों के हमले से बचने के लिए छोटे टाइगर ताकतवर एवं वयस्क होने तक दूसरा सुरक्षित वन क्षेत्र ढूंढ लेते हैं। इसी कारण एसटी-11 ने भी अलवर बफर जोन को पूर्व मे अपना अस्थाई ठिकाना बनाया था।