तीनों सरकारी अस्पतालों में रोजाना बड़ी संख्या में मरीजों की आने से पुलिस ने सुरक्षा की दृष्टि से यहां चौकी स्थािपत की हुई है। वैसे तो चौकी पर एक एसआई सहित दो कांस्टेबलों की ड्यूटी है, लेकिन इनमें से एक कांस्टेबल दिन व दूसरा रात्रि में ड्यूटी देता है। वहीं, एसआई थाने के काम से दिनभर व्यस्त रहता है। रात्रि में उसकी गश्त ड्यूटी भी लगती है। एेसे में वह चाहकर भी चौकी पर पूरा समय नहीं दे पाता है।
अस्पताल आने वाले मरीजों की सुरक्षा में कांस्टेबलों के सामने सबसे बड़ी बाधा तीनों सरकारी अस्पतालों का एक-दूसरे से दूर होना है। एेसे में एक कांस्टेबल का कार्यक्षेत्र काफी बढ़ जाता है और वह चाहकर भी तीनों अस्पतालों पर नजर नहीं रख सकता। एेसे में उसकी प्राथमिकता शहर सहित जिले से आने वाले दुर्घटना मेंं घायलों को उपचार उपलब्ध कराना व वीआईपी की सुरक्षा रहती है।
२५०० से ३५०० मरीज रोज आते हैं आउटडोर में।
५०० से ७०० का रहता है इनडोर।
४ से ५ हजार परिजनों की प्रतिदिन आवाजाही।
अस्पताल में जहां भीड़, वहां जेबतराश बेखौफ
पर्ची पंजीकरण काउंटर।
भर्ती वार्डों में।
अस्पताल के बाहर।
दवा काउंटर पर।
जांच रिपोर्ट जारी करने वाले काउंटरों पर।
आउटडोर में लगी कतारों पर।
अस्पताल में भर्ती मरीज व उनके परिजनों का सामान चोरी होना सरकारी अस्पतालों में आमबात हो गई है। कुछ दिनों पहले सामान्य चिकित्सालय में भर्ती एक मरीज का मोबाइल कोई चुरा ले गया। इससे पहले भी एक भर्ती मरीज का सामान चोरी हो चुका है। गत दिनों अस्पताल में चोरी करते एक युवक को मरीज व उसके परिजनों ने पकड़ कर चौकी पुलिस को सौंपा। यह तो सिर्फ बानगी है। हकीकत ये है कि इन तीनों अस्पतालों में मरीजों को ना सिर्फ अपने सामान की बल्कि नवजात शिशुओं की सुरक्षा भी स्वयं करनी पड़ती है।