नंगला रायसिस गांव में होपवेल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर के परिसर में करीब दस साल पहले 350 फीट गहरे बोरवैल में पानी खत्म हो गया था। इस परेशानी को दूर करने को लेकर सेन्टर के संचालक ने पूरे परिसर को वाटर हार्वेस्ंिटग से जोड़ा। अब बारिश के एक बूंद भी परिसर से बाहर नहीं जाती। छत व परिसर का पूरा पानी धरती के गर्भ में जाता है। इसके अलावा टॉयलेट के पानी को भी 40 फीट व 60 फीट के बड़े टैंकों के जरिए फिल्टर करके भू-गर्भ में भेजा जाता है। टॉयलेट का गंदा पानी पहले सेप्टिक टैंक में फिर दूसरे टैंक के जरिए साफ करके पौधों को पानी पिलाया जाता है।
बदल गई तस्वीर जल संरक्षण के इन उपायों से पुराने बोरवैल में पानी 250 फीट पर ही उपलब्ध है। 24 घण्टे लगातार दो इंच पाइप से बोरवैल का पानी निकालते हैं तो भी पानी आना बंद नहीं होता। जबकि दस साल बोरवैल एक घंटे में पानी फेंकना बंद कर देता था।
खेतों के नीचे धरती में पानी नहीं नंगला रायसिस के किसान सतपाल कहते हैं कि उनके खेत में अब एक इंच भी पानी नहीं बचा। बल्कि आसपास के दूसरे खेतों के बोरवैल पूरे सूख गए हैं। इस रिसर्च सेन्टर में पानी ऊपर आता जा रहा है। यह कमाल ही लगता है।
हम भी अचम्भित हम खुद अचम्भित हैं। विश्वास हो गया कि वाटर हार्वेस्टिंग से बड़ा बदलाव संभव है। पहले जिस बोरवैल में 350 फीट पर पानी नहीं था, उसमें अब 250 फीट पर भी खूब पानी मिल रहा है।
-विकास गुप्ता, संचालक, होपवेल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर अलवर