बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आए इंद्रलाल मपारा ने बताया कि हम उस समय अखंड भारत में रहते थे, 14 अगस्त 1947 को जब हमें पता चला जहां हम पले-बढ़े, हमारे पूर्वजों की जमीन अब पाकिस्तान कहलाएगी, सच कहें तो एक पल में लगा कि एक पल में हम गुलाम हो गए हैं।
उस समय हमारे समाज के जागरुक लोगों ने तत्काल फैसला लिया कि चाहे कुछ भी हो लेकिन वे पाकिस्तान में नहीं रहेंगे। क्योंकि सवाल धार्मिक और राजनीतिक आजादी का था। विभाजन के दौरान काफी दुखद घटनाएं देखी, 10 लाख से अधिक लोग विभाजन में मारे गए। विभाजन के बाद हम अलवर जिले के खैरथल गांव में रहे, रियासत काल के राजा का सहयोग ही हमारे जीने का संबल था।
मपारा ने बताया कि हम गढऱा रोड की तरफ से आए और दिल्ली तक जहां भी गए, जिस भी सज्जन से बात की, सबने विभाजन का दुख जाहिर किया। हम नौजवानों पर 300 से अधिक परिवारों को बसाने का जिम्मा था। विभाजन के बाद इस कार्य में तकलीफों के पहाड़ सामने आए, लेकिन ईश्वर ने सब ठीक किया। उन दिनों को याद करते हुए हमारी पीढ़ी आज भी दर्द महसूस करती है।
स्थिति सामान्य होने में कई दशक लग गए ( Partition of India a and Pakistan ) बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए बिहारी लाल खत्री बताते हैं उस समय उनकी उम्र 10 वर्ष थी। पाकिस्तान में चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। बंटवारे के दौरान बहुत दुख-कष्ट झेले। यहां आने के बाद 2 साल तक परिवार शरणार्थी के तौर पर सरकारी कैंप में रहा। फिर काफी साल मेहनत करने के बाद इन्होंने यहां परिवार बसाया।