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पुश्तैनी काम में है नूर, लेकिन नई पीढ़ी फिर भी दूर

locationअलवरPublished: Apr 25, 2018 01:33:07 pm

Submitted by:

Prem Pathak

अलवर में नई पीढ़ी पुस्तैनी काम में रूचि नहीं दिखा रही है। अलवर में अब भी पुश्तैनी कार्यों को बुजुर्ग ही कर रहे हैं।

youngsters isn't taking interest in patrimonial work
अलवर. बड़े बुजुर्गों का कहना है कि उत्तम खेती और मध्यम व्यापार। नौकरी इसके बाद में। इसी वजह से शताब्दियों से घर परिवार, दुकान, फड़ में ही असली स्किल डवलपमेंट हो जाता था। इसके बावजूद नई पीढ़ी परिवार के जमे जमाए धंधे से ही दूरी बनाकर नौकरी में ही तरक्की की राह देख रही है। कहीं पुराने धंधे भी मंदे पड़े हैं, तो कहीं परिवार के होनहार युवाओं की बेरुखी से भी इन जमे जमाए काम- धंधों की चूलें हिल रहीं है।
आढ़त के काम से मोड़ रहे मुंह

अलवर कृषि उपज मंडी का नाम देश की ख्यातिनाम कृषि उपज मंडियों में रहा है। यहां से सरसों देश के कई राज्यों में जाती है। यहां के व्यापारियों की विरासत को सन् 2000 तक उनकी संतान ने संभाला लेकिन इसके बाद तो यहां स्थिति खराब हो गई। यहां अधिकतर व्यापारियों की संतान पढ़-लिखकर अन्य व्यवसाय कर रही है। केडल गंज व्यापारिक संचालन समिति के अध्यक्ष वीरेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि कृषि जिंसों के कारोबार में सरकारी नियंत्रण अधिक होने और वायदा बाजार के कारण इसके प्रति रुझान नई पीढ़ी का कम हो रहा है। युवा यहां होने वाली परेशानियों से बचकर नौकरी करना अधिक पसंद कर रहे हैं।
हर काल में इस धंधे का कमाल कायम रहा है

रियासत काल से लेकर आधुनिक समय तक दर्जी का रुआब कायम है। इनकी अहमियत गांव-ढाणी से लेकर महानगरों तक में है। रेडिमेड कपड़ों के चलन के बावजूद परम्परागत दुकानों पर लोग कपड़े सिलाने जाते रहते हैं। इस काम से जुड़े नामचीन दर्जियों का कहना है कि वे अब नई पीढ़ी को इससे नहीं जोड़ पा रहे हैं। हाल ये है कि दुकानों पर कई बार काम इतना अधिक होता है कि ग्राहक को मना करना पड़ता है। इसके बावजूद नई पीढ़ी किसी नौकरी या दूसरे काम- धंधे को तरजीह देने लगी है। चुनौतियों के बावजूद अपने काम में सम्मान है।

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