देशवा-विदेशवा मा मिले सम्मान हो
अइबे जबसे मोदी नाहीं बोले पाकिस्तान हो,
देशवा-विदेशवा मा मिले सम्मान हो बाराबंकी. बाराबंकी में गठबंधन की रैली का एक दृश्य। बसपा प्रमुख मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव यहां संयुक्त रैली कर रहे हैं। यहां भी एक गीत गूंज रहा है-
हथिया से आवेली बहिनिया, चढि़ साइकिल अखिलेश इसी तरह के कुछ और चुनावी स्वर जो बेहद ही तात्कालिक मौजूं हैं उन्हें कांग्रेस,सपा-बसपा और भाजपा की रैलियों में सुना जा सकता है। इन गीतों में चुनावी उठा-पटक है। एक दूसरे पर कटाक्ष है। यह गीत मतदाताओं की जुबान पर भी चढ़ गए हैं। चुनावी रैलियों में आने वाले कुछ लोग तो सिर्फ चुनावी गीतों का आनंद लेने ही आते हैं। चुनावी जंग का बखान करते यह गीत कभी-कभी अपनी सीमाएं भी लांघ रहे हैं। इनमें आलोचना के स्वर काफी तीखे और अश्लील हैं। लेकिन, इन पर नजर चुनाव आयोग की नहीं है। इस गीत में भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल उर्फ निरहुआ पर तंज कसा गया है-
चापि गठबंधन तो जुड़ाय जईबा निरहू बिरहा गायन के बेताज बादशाह थे बलेश्वर यादव। इस भोजपुरी गायक का चुनाव प्रचार में सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने खूब किया। बलेश्वर के शिष्य और उनकी पीढ़ी को आगे बढ़ाने वाले ज्यादातर यादव हैं। इसलिए इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के ज्यादा बिरहा सुनने को मिल रहे हैं। खास बात यह है सपा-और बसपा के बीच की पुरानी कड़ुवाहट को भुलाने वाले गीत खूब बज रहे हैं। इस तरह के गीत चुनावी रैलियों में तो बज ही रहे हैं। यू ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया टूल्स पर भी खूब पसंद किए जा रहे हैं। मनोज तिवारी, दिनेश लाल यादव निरहुआ और रवि किशन जैसे भोजपुरी चेहरे जो अब नेता बन चुके हैं के अलावा विजय लाल यादव, धर्मेद्र यादव,बिट्टू सावन और बुंदेली गायिका संजो बघेल जैसे तमाम लोग इन गीतेां को लिख और गा रहे हैं। भाजपा के समर्थन में बने गीतों में राष्ट्रवाद, सेना-देशप्रेम और सम्मान जैसे मुद्दे के अलावा मोदी की कार्य-कुशलता का गुणगान है। तो सपा-बसपा के पक्ष में लिखे गए गीतों में दोनों ही दलों की एकता की बात की जा रही है। इसके साथ समाजवाद और अंबेडकरवाद को एक साथ दिखाने की कोशिश हो रही है। सपा-बसपा गठबंधन के लिए लिखे गए एक लोकगीत के बोल हैं-
रणचंडी है बहन हमारी, वीर लोरिक अखिलेश हैं