बावजूद इसके मैदानी स्तर पर सभी मेहनत केवल कागजों में ही नजर आती है। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पंडो समाज की महिलाओं को माहवारी में आज भी पुरानी रूढि़वादी परंपरा के तहत प्रति माह 7 दिनों तक घरों में अलग कमरे में रहने विवश होना पड़ता है। महिलाओं को एक अलग कमरे में रखकर भोजन-पानी की व्यवस्था वहीं अंदर में ही उपलब्ध करा दी जाती है। जिन परिवारों में केवल पति-पत्नी रहते हैंए वहां पर पति को ही अकेले घर का सारा कार्य पूर्ण करने कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
7 दिनों तक महिला अकेले एक कमरे में ही बंद रहती है और नारकीय जीवन जीने विवश होती है। पंडो समाज की महिलाओं का कहना है कि पुरानी परंपरा के तहत ही हम लोगों को रीति रिवाज का पालन करने विवश होना पड़ता है, जबकि दूसरे समाज में ऐसी कोई प्रथा अब मान्य नहीं रह गई है। इससे यह अंदाज लगाया जा सकता है कि शासन-प्रशासन के पंडो जनजातियों में रूढि़वादी परंपराओं के प्रति जागरूकता के दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं।
नहीं मनाते त्योहार
पंडो समाज की महिलाओं का कहना है कि जब हमें अलग रहना पड़ता है और यदि उस दौरान कोई त्योहार पड़ता है तो उसे परिवार में कोई नहीं मनाता है। जब साफ-सफाई हो जाती है, तब त्योहार को मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि साफ -सुथरा रहने पर ही घर में त्योहार की खुशी देखने को मिलती है।
परंपरा का करते हैं पालन
ग्राम पंचायत पंडोनगर के सरपंच आगर साय ने कहा कि हमारे समाज में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका हमारे द्वारा पूरी निष्ठा के साथ पालन करना पड़ता है। समाज के रीति-रिवाज को नहीं बदला जा सकता है।
इस दिशा में जागरूकता लाना आवश्यक है। महिलाएं अपने भाई और पिता से पैड के लिए पैसे मांगें। शुरुआत में जरूर झिझक होगी, लेकिन इसके बाद पुरानी परंपरा बदलेगी। गांव में भी चौपाल लगा कर इस विषय पर चर्चा कर जागरूकता लाई जा सकती है। हमने इस जागरूकता की शुरुआत ऐसे ही की थी। मोनिका इजारदार, नोडल ऑफिसर, माहवारी स्वच्छता प्रबंधन