script20 इंसानों की जान ले चुके दंतैल हाथी को बेहोश करने में लगे 3 दिन, देहरादून और तमिलनाडु से बुलाए गए थे विशेषज्ञ | Dental elephant took 20 lives, experts did unconscious after 3 days | Patrika News

20 इंसानों की जान ले चुके दंतैल हाथी को बेहोश करने में लगे 3 दिन, देहरादून और तमिलनाडु से बुलाए गए थे विशेषज्ञ

locationअंबिकापुरPublished: Nov 30, 2018 04:07:59 pm

सोनगरा जंगल में डार्ट कर हाथी को किया गया बेहोश, इसके बाद पहनाया गया रेडियो कॉलर

Elephant unconscious

Dental elephant

अंबिकापुर. हाथी व मानव द्वंद रोकने के लिए वन विभाग द्वारा हाथियों का चिन्हांकन कर उनपर नजर रखने के लिए रेडियो कॉलर लगाया जा रहा है। वन विभाग द्वारा अब तक अविभाजित सरगुजा में ३ हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाकर सेटेलाइट के माध्यम से नजर रखी जा रही है।
तीन दिन की कड़ी मशक्कत के बाद गुरुवार की शाम वन विभाग, देहरादून वन जीव अनुसंधान केंद्र व तमिलनाडु से आए ट्रैकरों की टीम ने बांकी दल के दंतैल हाथी को बेहोश कर रेडियो कॉलर लगाने में सफलता हासिल की।
दंतैल हाथी सहित बांकी दल ने अब तक अविभाजित सरगुजा में 20 लोगों की जान ली है। इसकी वजह से वन विभाग की टीम के लिए दंतैल को रेडियो कॉलर लगाना कठिन काम था।

हाथियों को सेटेलाइट कॉलरिंग करने के लिए भारत सरकार से छत्तीसगढ़ सरकार को अनुमति प्रदान करने के बाद इसका सबसे पहला उपयोग सरगुजा वन वृत्त के बलरामपुर वन परिक्षेत्र में सक्रिय ‘बहरादेव’ हाथी पर 12 मई को किया गया था।
Elephant experts
बहरादेव पर कॉलरिंग करने के बाद वन विभाग ने अन्य हाथियों पर भी नजर रखने रेडियो कॉलर लगाने के लिए कड़ी मशक्कत शुरू कर दी थी। सूरजपुर वन वृत्त के प्रताापुर क्षेत्र के मोहनपुर व उसके आसपास के क्षेत्रों में आतंक का पर्याय बन चुके बांकी दल के सदस्य दंतैल को रेडियो कॉलर लगाने का प्रयास वन विभाग की टीम द्वारा किया जा रहा था।
इसके लिए सोनगरा व उसके आसपास के जंगल में पिछले तीन दिन से पूरा अमला रात-दिन मशक्कत कर रहा था। गुरुवार की शाम ४ बजे के आसपास जब दंतैल हाथी दल से अलग हुआ तो उसे रायपुर के नंदन कानन के विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. जाडिय़ा व उत्तराखंड के भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के डॉ. पराग निगम ने डार्ट किया।
हाथी को बेहोश करने के बाद वन विभाग के साथ बाहर से आई टीम के सदस्यों ने उसके गले में रेडियो कॉलर लगाया। लगभग 45 मिनट की मशक्कत के बाद दक्षिण अफ्रीका से लाए गए सेटेलाइट कॉलरिंग को महावतों की मदद से लगाया गया। जब सिग्नल मिला और डॉ. जाडिय़ा द्वारा ओके रिपोर्ट दी गई तब जाकर टीम के सदस्यों ने राहत की सांस ली।

100 मीटर की दूरी पर था पूरा दल
जब वन विभाग की टीम दंतैल के गले पर रेडियो कॉलर लगा रही थी। उस समय बांकी दल 100 मीटर की दूरी पर खड़ा था। उन्हें काफी मशक्कत के बाद तमिलनाडु से आई ट्रैकरों की टीम ने खदेड़ा। तब कहीं जाकर पूरी प्रक्रिया की जा सकी।

बांकी दल पर रखी जा सकेगी नजर
दंतैल को कॉलरिंग करने के बाद अब उसपर नजर रखी जा सकेगी। बांकी दल के साथ वह रहता है। इसकी वजह से दल पर सेटेलाइट के माध्यम से नजर रखी जा सकेगी।

देहरादून से तमिलनाडु तक के विशेषज्ञ रहे शामिल
इस पूरे अभियान में जहां स्थानीय अधिकारी के रूप में मुख्य वन संरक्षक उपस्थित रहे। उनके साथ ही कोरिया जिले के डीएफओ इमो टेमसू आव, भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के डॉ. प्रयाग निगम, डॉ. विबाग पण्डो, डॉ. सम्राट, नंदन कानन रायपुर के डॉ. जेके जाडिय़ा, कानन पंडारी बिलासपुर के डॉ पीके चंदन,
अंबिकापुर के डॉ. सीके मिश्रा, डब्ल्यूआइआइ के साइंटिस्ट लक्ष्मीनारायण, बायोलॉजिस्ट अंकित कुमार, अमलेन्दु मिश्रा, हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे, बिलासपुर के सोनू कम्पाउंडर, डायरेक्टर हाथी रिजर्व फारेस्ट अरविंद कुमार, कृष्णा चंद्राकर, जगतराम, रामकिशोर मरावी, प्रेमकांत तिवारी व तमिलनाडू के 10 ट्रैकर शामिल रहे।

सबसे कठिन था दंतैल को कॉलरिंग करना
सीसीएफ केके बिसेन ने बताया कि बांकी दल काफी आक्रामक है। यह दल प्रतापपुर व सूरजपुर क्षेत्र में काफी नुकसान पहुंचा चुका है। इस दल का दंतैल मुखिया था। वर्तमान में वह मदमस्त है। इसकी वजह से उसे दल से अलग करना काफी कठिन था।
दंतैल रूट निर्धारित करता था और जब वह सड़क की जानकारी दल के सदस्यों को देता है, तब ग्रुप आगे बढ़ता है। लेकिन 4 बजे के आसपास जैसे ही वह ग्रुप से अलग हुआ उसे डॉक्टरों की टीम ने डार्ट कर अचेत कर दिया।
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