रायपुर और रांची के डॉक्टरों ने खर्च बताया 2 लाख तो लौट गया मरीज, यहां 20 हजार में हो गया सफल ऑपरेशन
झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से एक युवक के दोनों कूल्हे हो गए थे डैमेज, मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहली बार हुआ कूल्हे का प्रत्यारोपण

अंबिकापुर. झोला छाप डॉक्टर से इलाज कराना एक युवक की जिंदगी पर बन आई थी। अत्यधिक मात्रा में स्टेरॉयड दवाइयां खिलाए जाने की वजह से उसके दोनों कूल्हे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। इलाज के लिए वह रायपुर व रांची तक जा चुका था। लेकिन कूल्हा प्रत्यारोपण में आने वाले खर्च को सुनकर पिछले 6 माह से वह अत्यधिक दर्द को झेलते हुए घर में ही पड़ा हुआ था।
मेडिकल कॉलेज में पदस्थ डॉ. अनुरंजन दुबे ने उसका इलाज शुरू किया और शनिवार को सरगुजा जिले का पहला सफल कूल्हा प्रत्यारोपण ऑपरेशन किया। इस ऑपरेशन में जहां निजी चिकित्सालय में 2 लाख रुपए का खर्च आता। वह यहां महज 20 हजार रुपए खर्च में ही हो गया।
बलरामपुर निवासी ३५ वर्षीय सुरेन्द्र कुमार पिछले काफी दिनों से कूल्हे के अत्यधिक दर्द से परेशान था। इसके साथ ही वह चलने-फिरने में भी असमर्थ हो चुका था।
कूल्हे के दर्द से राहत हेतु सुरेन्द्र रायपुर व रांची के निजी चिकित्सालय में भी इलाज करा रहा था। वहां डॉक्टरों ने कूल्हा प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी थी लेकिन निजी चिकित्सालय में कूल्हा प्रत्यारोपण में जो खर्च बताया गया वह काफी अधिक था। इसकी वजह से वह इलाज कराने की बजाए पिछले ६ माह से अपने घर में ही पड़ा हुआ था।
अत्यधिक दर्द की वजह से सुरेन्द्र अपना दैनिक जीवन के कार्य करने में असमर्थ था। शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनुरंजन दुबे ने उसे कूल्हे के दर्द से काफी कम खर्च पर राहत पहुंचाई। शनिवार को सुरेन्द्र के कूल्हा का सफल ऑपरेशन किया गया।
डॉक्टरों की टीम ने जब सुरेन्द्र का एक्स-रे कराया तो पता चला कि उसके दोनो कुल्हों में एव्हीएन स्टेज-४ की बीमारी है। इसके बाद ही कूल्हे के प्रत्यारोपण किया गया।
झोला छाप डॉक्टर के इलाज से हुआ गम्भीर
सुरेन्द्र हमेशा कूल्हे के दर्द से परेशान रहने की वजह से अपना इलाज झोला छाप डाक्टर से करा रहा था। झोला छाप डॉक्टर द्वारा स्टेरॉयड की लगातार दवा दी गई। इसकी वजह से कूल्हों का रक्त प्रवाह समाप्त हो जाता है।
इसका एकमात्र इलाज कूल्हों का प्रत्यारोपण होता है। प्रत्यारोपण में लगभग 2 लाख रुपए का खर्च आता है, जो आम मरीज के लिए संभव नहीं है। शासकीय अस्पताल में यह इलाज महज 20 हजार रुपए के खर्च में संभव हो सका।
दो डाक्टरों ने किया तीन घंटे ऑपरेशन
शनिवार को डॉ. अनुरंजन दुबे ने एनेस्थिसया विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. श्रद्धानंद कुजूर के साथ ऑपरेशन किया। डॉक्टरों के अनुसार यह ऑपरेशन काफी जटिल होने के साथ ही चुनौती पूर्ण था। लगभग तीन घंटे तक बाद डॉक्टरों द्वारा सुरेन्द्र के परिजन को ऑपरेशन के सफल होने की जानकारी दी गई।
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