अनिता मंदिलवार ने कविता- मौसम की मनमानी लिखते हैं, कहीं धूप, कहीं पानी लिखते हैं- में वर्षाकालीन वातावरण का जीवंत चित्रण किया। मनुष्य को जीवन में एक सच्चे जीवन साथी की तलाश हमेशा रहती है, इससे वह अपने निजी सुख-दुख, परेशानियों, विचारों और भावनाओं को साझा कर सके। गीतकार संतोषदास सरल के गीत ने इसी ओर संकेत भी किया- कोई हमदर्द मिले, दिल का दर्द बांट लूं, जि़दगी चल तुझे मौसम की तरह काट लूं। वरिष्ठ कवि एसपी जायसवाल ने भारतीय नारी की अपार शक्तियों और बेमिसाल उपलब्धियों का बखान करते हुए यहां तक कह डाला कि- अब घूंघट के पार हुईं नारियां, अब बुरके उतार रहीं नारियां। अब अबला नहीं, सबला हुईं नारियां।
धरती ही नहीं आसमान में वायुयान उड़ा रहीं नारियां। उन्होंने सरगुजिहा गीत- दाई मोर दाई, तोर से सुघ्घर कोनो नहीं, दुनिया ले खोज के हारें मैं- की भी सुन्दर प्रस्तुति दी। देवेन्द्रनाथ दुबे एक मंजे हुए गीतकार हैं। उन्होंने जीवन की सच्चाईयों से सबको रूबरू कराया- तनहाई को मीत बनाया जा सकता है, दीवारों को गीत सुनाया जा सकता है। नागफनी को देखा तो ये याद आया, गमले में भी दर्द उगाया जा सकता है। उनके गीत – तोल-मोल के बोल रे बंदे- ने गोष्ठी में धूम मचा दी। वरिष्ठ कवि अंजनी कुमार सिन्हा ने अपने गीत में सही फरमाया कि- दिल में चुभे जो बात वो बोली नहीं जाती, दिल है दिल से दिल्लगी की नहीं जाती। इबादत दिखावटी, इरादे नापाक हों, ख़ुदा क़सम ख़ुदा तलक बंदगी नहीं जाती। अम्बरीश कश्यप ने अपने काव्य में चुनौतियों का सामना करने का आव्हान किया- कांटों से भरपूर भरा था ये रस्ता, चला तो अब आसान दिखाई देता है।