टीम ने 168 मीटर पानी के ऊंचाई पर चढऩे के प्रवाह तथा 200 मीटर गाड़़ी तक बंद गाड़ी चल जाने के स्थलों का निरीक्षण किया। उल्टा पानी के 140 मीटर के 10 से अधिक स्थानों को चुम्बकीय प्रतिरोध क्षमता को मापा। प्रतिरोध कंडक्टिविटी के माध्यम से पानी के ऊपर चढऩे के कारण को तलाशने का प्रयास किया।
डॉ. एसके श्रीवास्तव ने बताया कि उल्टा पानी का प्रारम्भ ढोढ़ी से निकलने वाले पानी से शुरू होता है। 140 मीटर के दूरी के दौरान पानी ऊंचाई पर चढ़ता जाता है। इस दौरान जमीन से 15 फीट पानी ऊपर उठ जाता है। उन्होंने बताया कि 140 मीटर के बीच में पानी की प्रतिरोध क्षमता, चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय तीव्रता को मापा गया।
इस दौरान प्रत्येक स्थान के मिट्टी का नमूना लिया गया। ढोढ़ी से निकलते पानी का प्रतिरोध और चुम्बकीय तीव्रता के साथ ही ऊंचाई पर पहुंचने के दौरान पानी का प्रतिरोध ओर चुम्बकीय तीव्रता का आंकड़ा लिया गया। अब पीजी कॉलेज की प्रयोगशाला में मिट्टी, पानी का डायरेक्ट्री कांस्टेंसी परीक्षण किया जाएगा।
चुम्बकीय प्रतिरोध पर है वैज्ञानिकों की निगाहें
मैनपाट की वादियों में स्थित उल्टा पानी विज्ञान के लिए चुनौती है तो कुदरत का करिश्मा भी है। मिट्टी, पानी और हवाओं के बीच का संयोजन तिलिस्म है। कुदरत का करिश्मा और तिलिस्म को अब विज्ञान के दक्ष नियमों, सिद्धांतों से परखा जाएगा।
डॉ. श्रीवास्तव और शैलेष देवांगन ने बताया कि ढोढ़ी के पानी की ऊंचाई और दूरी बढऩे के साथ ही चुम्बकीय प्रतिरोध कम होता जा रहा है। बंद गाड़ी भी ऊंचाई पर चढ़ते हुए चलनी लगती है। 200 मीटर के दूरी के दौरान गाड़ी की गति भी बढ़ जाती है।
इन यंत्रों के साथ हुआ मापन
हेल्म होल्टल गैल्वोनोमीटर- चुम्बकीय रेखाओं की स्थिति और तीव्रता का मापन करते हैं।
गौस मीटर- क्षेत्र की चुम्बकीय तरंग मापते हैं।
प्लस मीटर- चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता मापते हैं।
एमीटर, बोल्ट मीटर- विद्युत धारा का मापन करते हैं।
रेसडेंस मीटर- प्रतिरोध क्षमता का मापन करते हैं।
एलसीआर- हाई टेस्टर इंस्ट्रमेंट से कंडक्टीविटी कैपेसिटेंस मापते हैं।