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अडानी के खिलाफ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की जनहित याचिका, ये है मामला

locationअंबिकापुरPublished: Mar 05, 2019 09:05:41 pm

अडानी कंपनी द्वारा उदयपुर विकासखंड के परसा-केते में किया जा रहा कोयले का उत्खनन, आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश सोनी की ओर से अधिवक्ताओं ने पेश की है याचिका

Supreme court

Supreme court of India

अंबिकापुर. अडानी के खिलाफ आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका पेश की गई है। सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश सोनी प्रति यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य के खिलाफ सरगुजा जिले के परसा केते बासेन कोल ब्लॉक में नियम विरूद्ध तरीके से उत्खनन करने की अनुमति प्रदान की गई है, इसे लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

सरगुजा जिले के परसा, केते व बासेन में कोल उत्खनन के लिए भारत सरकार द्वारा तय किए गए मापदंड को अनदेखा करते हुए कोल ब्लॉक आबंटित कर दिया गया है। इसे लेकर आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश सोनी ने यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य के खिलाफ जनहित याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण व नेहा राठी के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता प्रशांत भूषण तथा नेहा राठी द्वारा जनहित याचिका आर्टिकल 32 के तहत डीके सोनी की ओर से प्रस्तुत किया है।


याचिका में किया गया है अवैध उत्खनन का उल्लेख
याचिका में मुख्य रूप से अवैध तरीके से अडानी द्वारा परसा, केते व बासेन में किये जा रहे कोल उत्खनन को अवैध बताया है। याचिका में जिक्र किया गया है कि उपरोक्त खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी लिमिटेड को आबंटित किया गया है। लेकिन मौके पर राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी द्वारा कार्य न कर पूरा कार्य अडानी द्वारा किया जा रहा है।

राजस्थान राज्य विद्युत व अडानी के बीच नहीं है कोई अनुबंध
याचिका में बताया गया है कि भारत सरकार वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी स्वीकृति आदेश दिनांक 21 दसंबर 2011 का खुले रूप से उल्लंघन किया जा रहा है।
इसके अलावा राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी द्वारा सूचना के अधिकार के तहत यह भी जानकारी दी गई है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी लिमिटेड एवं अडानी के मध्य किसी प्रकार का कोई भी अनुबंध एवं एमओयू नही हुआ है। इसके अलावा 21 दिसंबर 2011 की अनुमति की कंडिका क्रमांक-2 का उल्लंघन किया जा रहा है।
कोयला निकालने के लिए ड्रिलिंग एवं ब्लास्टिंग नही किया जा सकता है लेकिन मौके पर ब्लास्ट एवं ड्रिलिंग किया जा रहा है। खदान एवं गांव के बीच 30 मीटर चौड़ाई ग्रीन बेल्ट के लिए पौधा लगावाया जाना था, लेकिन नहीं लगाया गया है। अनुमति में यह उल्लेखित है कि राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण्य, जीव मंडल रिजर्व बाघ रिजर्व, हाथी कारिडोर आदि का भाग है। यदि हां तो क्षेत्र का ब्यौरा तथा मुख्य वनजीव वार्ड की टिप्पणियां संलग्र की गईं हैं।
इसमें तात्कालीन डीएफओ एमके सिंह द्वारा जो जानकारी दी गई वह ‘नहीं’ का उल्लेख किया गया है। जबकि वर्ष 2007-08 एवं 2008-09 में प्रस्तावित क्षेत्र के आस पास से भटके हुए जंगली हाथियों को गुजरते हुए देखा गया है। उक्त जंगल में स्थाई रूप से भालू एवं तेंदुआ रहते हैं तथा हाथियों का हमेशा ग्राम घाटबर्रा केते में आना-जाना लगा रहता है।

अनुमति से अधिक क्षेत्र में किया जा रहा है उत्खनन
जनहित याचिका में अवैध तरीके से आबंटित भूमि से अधिक क्षेत्र में कोल उत्खनन करने का भी आरोप लगाया गया है। पूरे मामले में पुनर्वास नीति का पालन नहीं करने, प्रभावित क्षेत्र के लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं कराने, 10 एमटी से अधिक का उत्खनन करने, सीएसआर मद का गलत जगह खर्च करने का भी आरोप लगाया गया है।
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