गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह इन दिनों सरगुजा दौरे पर हैं। उन्होंने बताया कि आयोग अनुसूचित जनजाति के लिए एक न्यायालय है। बिना अधिवक्ता के भी आयोग में लोग अपना पक्ष रख सकते हैं और सुनवाई करवा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आयोग की जिम्मेदारी मिलने के बाद उनके सामने सरगुजा संभाग के कई मामले सामने आ चुके हैं। इन मामलों में पीडि़तों को उनका हक दिलाने का काम किया जाएगा। भोले-भाले आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लिए जाने के संबंध में उन्होंने कहा कि अगर इस तरह का कोई मामला सामने आता है तो आयोग द्वारा जांच कराई जाएगी। आयोग द्वारा अनुसूचित जनजाति के लोगों के बीच प्रचार-प्रसार कराया जाएगा कि वे किस तरह से अपनी शिकायतें उन तक पहुंचाएं।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों को विकास से जोडऩे का काम किया जाएगा। अनुसूचित जनजाति के जो क्षेत्र मूलभूत सुविधा से वंचित है उस क्षेत्र का दौरा कर आयोग के माध्यम से शासन को बताया जाएगा और उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
ऐसा रहा है राजनीतिक सफर
भानु प्रताप सिंह राजनीति में छात्र जीवन से ही सक्रिय रहे। यही कारण है कि पहले कांग्रेस प्रदेश संगठन में जगह दी गई और अब उन्हें अनुसूचित जनजाति आयोग अध्यक्ष बना दिया गया। अविभाजित मध्यप्रदेश में आमगांव पंचायत का सरपंच रहते भानु प्रताप को वर्ष 1996 में पहली बार तिवारी कांग्रेस से सरगुजा लोकसभा का उम्मीदवार बनाया गया।
हालांकि इसमें उन्हें जीत नहीं मिली पर वे अविभाजित सरगुजा संभाग में चर्चा में आ गए। 1998 में कांग्रेस ने उन्हें सूरजपुर विधानसभा से टिकट दिया। इस दौरान उन्होंने भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता शिवप्रताप सिंह को पराजित किया। जीत के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा में युवा विधायक के रूप में इन्हें एक अलग पहचान मिली।
मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रश्न संदर्भ समिति व वित्त सलाहकार समिति में उन्हें तत्कालीन विस अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने शामिल किया। पांच वर्ष विधायक रहने के बाद 2003 में उन्हें चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा।
इसके बाद भी वे राजनीति में सक्रिय रहे और वर्ष 2009 में सरगुजा लोकसभा सीट से उन्हें टिकट मिली। लेकिन उन्हें भाजपा के दिवंगत हो चुके मुरारीलाल सिंह से पराजय का सामना करना पड़ा। वर्तमान में वे पीसीसी उपाध्यक्ष हैं।