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अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्धाश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल

locationअंबिकापुरPublished: Oct 15, 2023 08:42:34 pm

शहर के वृद्धाश्रम में रहने वाले महिला-पुरूषों के लिए किसी प्रकार की बंदिश नहीं लेकिन सबके मन में कुछ न कुछ कसक है, जिससे वे घर छोडऩे के लिए विवश हुए। यहां रहने वाले कई वृद्ध अंबिकापुर शहर के आसपास के क्षेत्रों के हैं। कुछ वृद्ध ऐसे भी हैं, जिनका घर-परिवार यहां से कोसों दूर है। किसी ने अविवाहित पूरा जीवन बिता दिया, तो कोई भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी दर-दर की ठोकर खा रहा है। आस्था निकुंज ‘वृद्धाश्रम’ में पनाह लिए ऐसे ही वृद्धों से चर्चा करने पर सबका अलग-अलग दर्द छलक कर सामने आया।

अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्धाश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल
अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्धाश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल
अंबिकापुर। शहर के वृद्धाश्रम में रहने वाले महिला-पुरूषों के लिए किसी प्रकार की बंदिश नहीं लेकिन सबके मन में कुछ न कुछ कसक है, जिससे वे घर छोडऩे के लिए विवश हुए। यहां रहने वाले कई वृद्ध अंबिकापुर शहर के आसपास के क्षेत्रों के हैं। कुछ वृद्ध ऐसे भी हैं, जिनका घर-परिवार यहां से कोसों दूर है। किसी ने अविवाहित पूरा जीवन बिता दिया, तो कोई भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी दर-दर की ठोकर खा रहा है। आस्था निकुंज ‘वृद्धाश्रम’ में पनाह लिए ऐसे ही वृद्धों से चर्चा करने पर सबका अलग-अलग दर्द छलक कर सामने आया। वहीं इस आश्रम में रह रहे एक वृद्ध ने मेडिकल छात्रों के लिए देहदान की घोषणा कर समाज के लिए मिसाल पेश की है।
अमृतसर पंजाब के बटाला निवासी ब्रह्मप्रकाश 85 वर्ष की उम्र सीमा को पार करने के पड़ाव पर हैं। एक बेटा-एक बेटी, पत्नी सहित भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी वे 19 वर्ष से भटकती जिंदगी का एक-एक पल काट रहे हैं। बेटे कमाने योग्य क्या हुए, पिता की खोज-खबर लेना भी उन्होंने उचित नहीं समझा। इसके बाद भी बिना किसी मलाल के अंबिकापुर के वृद्धाश्रम ‘आस्था निकुंज’ में उनके जीवन का एक-एक पल कट रहा है। वहीं उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने शहर के मेडिकल कॉलेज में ‘देहदान’ कर मिसाल पेश की है। ब्रह्मप्रकाश बताते हैं कि वर्ष 1965 में काम के सिलसिले में वे अंबिकापुर आए थे, उस समय बच्चे छोटे थे। बच्चों के पालन-पोषण के लिए वे अपने गृहग्राम से दूर निकल लिए। मिस्त्री का काम करके वे अपना और परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। काफी लंबा समय होटलों में लोहे का चिमनी बनाने का काम ठेके में करते बीत गया। इस बीच उनका घर आना-जाना होता था। वर्ष 2004 से पूरी तरह से घर आना-जाना बंद हो गया। उनका पत्नी, बेटा-बहू, दो पोता, एक पोती और दो नाती सहित भरा-पूरा परिवार है लेकिन हालात ने सबसे अलग कर दिया। इसके पहले 2013-14 में वे अपने गृहग्राम बटाला गए थे। यहां 16 माह उन्होंने अपने दोस्त जगदीश सिंह के यहां बिताया। इसकी खबर दोस्त ने स्वजन को दी थी लेकिन कोई उनसे मिलने नहीं आया। इसके बाद वे अंबिकापुर की ओर पुन: रुख कर लिए। उनका कहना है कि अब किसी से मिलने का मन नहीं करता और न ही किसी से उन्हें कोई शिकायत है।
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