scriptछत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ रही सिकलसेल के मरीजों की संख्या, दिव्यांगता की श्रेणी में आते हैं पीडि़त मरीज | The number of sickle cell patients is increasing rapidly in Chhattisga | Patrika News

छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ रही सिकलसेल के मरीजों की संख्या, दिव्यांगता की श्रेणी में आते हैं पीडि़त मरीज

locationअंबिकापुरPublished: Jun 02, 2022 08:23:35 pm

छत्तीसगढ़ में सिकल सेल से पीडि़त मरीजों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। सरगुजा संभाग भी इससे अछूता नहीं है। यहां मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कार्यक्रम के नोडल अधिकारी के अनुसार संभाग में दो हजार से ज्यादा लोग सिकल सेल से पीडि़त हैं।

sickle cell patients

sickle cell patients

अम्बिकापुर। छत्तीसगढ़ में सिकल सेल से पीडि़त मरीजों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। सरगुजा संभाग भी इससे अछूता नहीं है। यहां मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कार्यक्रम के नोडल अधिकारी के अनुसार संभाग में दो हजार से ज्यादा लोग सिकल सेल से पीडि़त हैं। वहीं सिकल सेल संस्थान छत्तीसगढ़ की रिपोर्ट २०१८ के अनुसार प्रदेश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी सिकल सेल से पीडि़त है। अगली रिपोर्ट सामने आती है तो सिकलसेल से पीडि़त मरीजों की संख्या में और अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. अमीन फिरदौसी ने बताया कि सिकल सेल पीडि़त मरीजों के लिए विशेष ओपीडी स्थानीय शासकीय शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवापारा में शुरू किया गया है। ओपीडी प्रतिदिन कार्य करता है, जिसे विशेष तकनीकी सहायता संगवारी संस्थान सरगुजा द्वारा दी जाती है।
छत्तीसगढ़ शासन एवं भारत शासन द्वारा गजट नोटिफिकेशन निकालकर सिकलसेल पीडि़त मरीजों को दिव्यांगता की श्रेणी में रखा गया है एवं ऐसे मरीजों को प्रतिमाह नि:शुल्क उपचार, दवाइयां, जांच एवं परिवहन की सुविधा दी जा रही है।

अनुवांशिक बीमारी है सिकल सेल
विशेषज्ञों की मानें तो सिकल सेल अनुवांशिक बीमारी है। यानी एक से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती है। सर्वे के अनुसार दस से 12 साल पहले छत्तीसगढ़ में यह बात सामने आई थी कि प्रदेश के कुछ जातियों में यह बीमारी पाई जाती थी, लेकिन आज सिकल सेल के मरीज हर वर्ग जाति के लोग हो रहे हैं।
यह लाइलाज बीमारी है, जिससे असमय मौत हो जाती है। सिकल सेल रोग लाल रक्त कोशिका संबंधी बीमारी है और जीन के माध्यम से व्यक्ति को विरासत में मिल जाती है। यह असामान्य जीन से उत्पन्न अनुवांशिक बीमारी है।

सिकलसेल के ये हैं लक्षण
यह रोग माता-पिता से बच्चों में जीन के द्वारा होता है। यह संक्रामक नहीं है और व्यक्ति से व्यक्ति इन्फेक्शन के द्वारा नहीं फैलता। हाथ और पैर में दर्दनाक सूजन, एनीमिया से थकान या घबराहट, त्वचा का पीला रंग, पीलिया, शरीर में लम्बे समय से दर्द रहना इस बीमारी के लक्षण हैं।
लाल रक्त कोशिकाओं में ही मौजूद हिमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन लेता है। सामान्य हिमोग्लोबिन ***** के आकार के होते हैं। ऑक्सीजन देने के लिए बड़े और छोटे रक्त नसों के जरिए आगे बढ़ते हैं लेकिन बीमारी से रक्त कण आधे चंद्रमा के आकार का हो जाता है जो बहाव के दौरान रक्त नलियों में फंस जाता है जिससे ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक सकती है और भयंकर दर्द होता है।

हाइड्रोक्सी यूरिया बेहद कारगर दवाई
शहरी कार्यक्रम प्रबंधक डॉ अमीन फिरदौसी ने बताया की सिकलसेल के लिए हाइड्रोक्सी यूरिया बेहद कारगर दवाई है जिसका प्रयोग चिकित्सकों की देखरेख में किया जाना चाहिए एवं पूरे विश्व भर में इसका प्रयोग किया जा रहा है। वहीं शहरी स्वास्थ्य केंद्र अंबिकापुर में सिकल सेल यूनिट खोले जाने से मरीजों को इसका लाभ मिल रहा है। लगातार जांच हुआ, दवाई से सुधार भी हो रहा है।
40 ऐसे मरीज हैं जो हर सप्ताह ओपीडी पहुंचते हैं और चिकित्सकों की देखरेख के कारण उचित इलाज होने से खून चढ़ाने की जरूरत अब कम पड़ रही है। जिसमें एसएस सिकल सेल के मरीज लगभग 30 हैं।

शादी के पूर्व जेनेटिक काउंसिलिंग जरूरी
इस बीमारी का कोई स्थाई उपचार नहीं है। यह एक अनुवांशिक बीमारी है जो माता-पिता से संतानों में पाई जाती है। इस बीमारी से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है कि हम शादी के पूर्व जेनेटिक काउंसिलिंग कराएं तभी शादी की जानी चाहिए। शादी के पूर्व अनिवार्य सिकलिंग जांच होना आवश्यक है। डॉ. अमीन फिरदौसी, शहरी स्वास्थ्य केंद्र अधिकारी अंबिकापुर
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