उन वीरसपूतों के बलिदान की याद में शनिवार को शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर वाहिनी सरमोनियल गार्ड द्वारा उन्हें सलामी दी गयी। कायक्रम में उपस्थित अधिकारियों एवं समस्त जवानों द्वारा शहीदों के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मौन धारण किया गया।
कमांडेन्ट मनीष कुमार मीणा ने शहीदों की वीरगाथा की संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस माओवादी इस कायराना हमले को अंजाम देने के लिये उस क्षेत्ऱ को सामरिक दृष्टि से सुरक्षित, उंचे स्थानों एवं पेड़ों पर पोजीशन ले रखी थी।
माओवादियों के इस हमले को विफ ल करने के लिये बल की टुकड़ी ने अदम्य साहस और बहादुरी के साथ डटकर मुकाबला किया। हमारे जवानों की घनघोर गोलाबारी और प्रति आक्रमण से माओवादियों के पैर उखडऩे लगे थे।
सुबह 6 बजे तक माओवादियों की संख्या बढ़ जाने के कारण मुठभेड़ और भीषण हो गया। इस हमले के दौरान माओवादियों ने हर उस स्थान पर आईईडी लगाया हुआ था, जहां हमारे जवान सुरक्षा कवर ले सकते थे।
जवानों ने दिखाई हिम्मत
माओवादियों से मुठभेड़ के दौरान बल के रणबांकुरों की बहादुरी और हिम्मत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि एक घायल जवान ने जब यह देखा कि अब प्राण रक्षा का कोई उपाय नहीं है तो उसने ग्रेनेड की पिन निकालकर उसे अपनी शरीर के नीचे दबाकर लेट गया।
एक अन्य जवान अपने हाथ में प्राइम ग्रेनेड लिये एक माओवादी के ऊपर कूद गया जिससे कई माओवादियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। कुछ वीर जवानों ने आखिरी सांस लेने से पहले अपने हथियार अपनी शरीर के नीचे भी छिपा लिये ताकि माओवादी उन्हें लूट न सके। बल के रणबांकुरों की जब तक सांस थी लड़ते रहे और उन्होंने देश की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया।