अमरीका ने काउंसिल पर राजनीतिक पक्षपात करने का आरोप लगाया है। संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की एंबेसडर निकी हेली ने परिषद पर इजरायल से राजनीतिक पक्षपात करने आरोप लगाते हुए ये ऐलान किया। आपको बता दें कि अमरीका लंबे समय से 47 सदस्यीय इस परिषद में सुधार की मांग कर रहा था। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीका तीन बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों से किनारा कर चुका है। इससे पहले उसने पेरिस क्लाइमेट चेंज फिर ईरान परमाणु समझौते से बाहर होने का ऐलान किया था और अब खुद को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) से बाहर करने का ऐलान अमरीका ने कर दिया है।
अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और निकी हेली ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि जब एक तथाकथित मानवाधिकार काउंसिल वेनेज़ुएला और ईरान में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में कुछ नहीं बोल पाती और कॉन्गो जैसे देश का अपने नए सदस्य के तौर पर स्वागत करती है तो फिर यह मानवाधिकार काउंसिल कहलाने का अधिकार खो देती है। निकी हेली ने कहा कि असल में ऐसी संस्था मानवाधिकारों को नुक़सान पहुंचाती है।
हेली ने कहा कि काउंसिल ‘राजनीतिक पक्षपात’ से प्रेरित है। उन्होंने कहा, ”हालांकि मैं ये साफ करना चाहती हूं कि काउंसिल से बाहर होने का मतलब ये नहीं है कि हम मानवाधिकारों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुकर रहे हैं।” हेली ने पिछले साल भी यूएनएचआरसी पर इजरायल के ख़िलाफ़ दुर्भावना और भेदभाव से ग्रस्त होने का आरोप लगाया था और कहा था कि अमरीका परिषद् में अपनी सदस्यता की समीक्षा करेगा।
यूएनएचआरसी से अलग होने का ऐलान रक्षा विभाग ने की ओर से किया गया। उस वक्त हेली के साथ रक्षा मंत्री माइक पोम्पियो भी थे। हेली ने परिषद पर मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले देशों का बचाव करने का आरोप लगाया। चीन, क्यूबा, ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों का हवाला देते हुए हेली ने कहा कि परिषद में कई ऐसे सदस्य हैं जो नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकार की इज्जत नहीं करते।।
आपको बता दें कि यूएनएचआरसी में अमरीका का कार्यकाल लगभग डेढ़ साल का पूरा हो चुका था। अमरीका ने तीन साल के लिए इस 47 सदस्यीय परिषद का सदस्य था। पिछले हफ्ते ही खबर आई थी कि अमेरिका की परिषद में सुधार की मांगों को नहीं माना गया है। इसके बाद माना जा रहा था कि अमेरिका परिषद को छोड़ देगा। यूएन सचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने अमेरिका के फैसले पर अफसोस जताया है।
जैसे कि नाम से ही मालूम होता है कि ये मानवाधिकारों की रक्षा की एक संस्था है। इसका उद्देश्य दुनिया में मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर नजर रखना होता है। इसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की जगह 2006 में बनाया गया था। अमेरिका को छोड़कर 46 देश इसके सदस्य हैं। भारत अभी इसका सदस्य नहीं है, लेकिन चार बार (2006-07, 2007-10, 2011-14 और 2013-17 में) सदस्य रहा है। 2013 में चीन, रूस, सऊदी अरब, अल्जीरिया और वियतनाम को इसमें शामिल किए जाने पर मानवाधिकार समूहों ने इसकी आलोचना की थी।