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ब्रिटेन के एक उपनिवेश से अमरीका कैसे बना सुपरपावर?

locationनई दिल्लीPublished: Jul 04, 2018 02:29:13 pm

आजादी के 244 वर्षो में अमरीका ने अंतरराष्‍ट्रीय मसलों पर अहम भूमिका निभाकर सुपरपावर की हैसियत हासिल की।

नई दिल्‍ली। अमरीका का विश्‍व मानचित्र पर उभरकर आना एक एक्‍सीडेंटल घटना है। लेकिन ब्रिटेन से आजाद होने के बाद वो सभी यूरोपियन देशों को पीछे छोड़ते हुए तेजी से विश्‍व मंच पर उभरकर सामने आया है। आजादी के बाद से ही अमरीका की नीति विस्‍तारवाद की रही है। इस सोच के दम पर ही अमरीका आज सुपरपावर है। उसकी इस हैसियत को चीन ने चुनौती दी है लेकिन सुपरपावर की जिम्‍मेदारी चीन उठा पाएगा या नहीं इस बात को लेकर दुनिया के देशों में अभी से भ्रम की स्थिति है। ऐसा इसलिए कि अभी से चीन की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।
अमरीका का उदय एक्‍सीडेंटल क्‍यों?
दरअसल, 1492 में क्रिस्‍टोफर कोलंबस भारत की खोज में समुद्री यात्रा पर निकले थे। बताया जाता है कि पहले दो हफ्ते उन्‍हें भूमि कहीं नजर नहीं आई। मगर जब वह भूमि पर पहुंचे तो उन्‍हें लगा उन्‍होंने इंडिया को खोज लिया है। पर उन्‍होंने भारत को नहीं बल्कि गलती से अमरीका को खोज निकाला। इस घटना ने ही अमरीका का परिचय यूरोपियन यूनियन से कराया। युरपीयन देशों में अमेरिका को अपना उपनिवेश बनाने की होड़ चलती रही। अंत में इंग्लैंड अमरीका को गुलाम बनाने में सफल हुआ। इंग्लैंड ने भी भारत की तरह अमरीका का भी बुरी तरह से आर्थिक शोषण किया। मगर 1773 ईसवी में महान जार्ज वाशिंगटन जी के नेतृत्व मे अमरीका 13 बस्तियों ने आजादी की घोषणा कर दी। इस आजादी को पुर्ण मान्यता 4 जुलाई, 1776 में मिली और जॉर्ज वाशिंगटन अमरीका के पहले राष्ट्रपति बने। इस नव स्‍तंत्र देश ने 19वीं सदी के अंत तक अपनी सीमाओं का विस्तार जारी रखा और आधुनिक अमरीका अस्तितव उभरकर सामने आया। आबाती के मामले में भी आज अमरीका चीन और भारत के बाद सबसे बड़ा देश है।
विश्‍वव्‍यापी नेटवर्क
अमरीका एकमात्र देश है जिसका सबसे ज्‍यादा प्रभावी नेटवर्क दुनिया भर में फैला हुआ है। आर्थिक दृष्टि से भी अमरीका आज नंबर एक है। विवाद की स्थिति में अमरीका दुनिया भर में फैले अपने सैन्‍य अड्डों के जरिए ज्‍यादा प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में है। परमाणु बमों की तकनीक सबसे पहले हासिल कर उसने दुनिया के देशों पर अपनी अलग छवि बनाई। आज भी दुनिया के सभी विवादित मुद्दों पर अमरीका हावी है और उसकी सहमति के बिना किसी भी समस्‍या का समाधान संभव नहीं है। चाहे अफगानिस्‍तान, उत्‍तर कोरिया, ईरान, पाकिस्‍तानी आतंकवाद, सीरिया, दक्षिण चीन सागर आदि में से कोई भी क्‍यों न हो अमरीका हर जगह हावी दिखाई देता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चीन और रूस ने उसे नए सिरे से चुनौती देने की कोशिश की है।
वैश्विक सोच
कहा जाता है कि अमरीका का हर राष्‍ट्रपति अपने देश के बारे में 50 साल आगे की सोचता है। ताकि उसकी संतति सुरक्षित रह सके। इसका उल्‍लेख फारेड जकरिया की पुस्‍तक फ्रॉम वेल्थ टू पावर में भी मिलता है। जकारिया अपनी पुस्‍तक में लिखते हैं कि अमरीकी नेतृत्‍व दूरदर्शी सोच रखता है। वह वैश्विक व्‍यवस्‍था को लीड करने की सोच पर आधारित है। 1776 में आजादी के बाद उसने अपनी अर्थव्‍यवस्‍था का तेजी से विस्‍तार किया है। दुनिया को बेहतर नेतृत्‍व देने के लिए उसने प्रेशिडेंशियल सिस्‍टम को अपनाया। यह अमरीकी विस्‍तारवादी सोच के सबसे ज्‍यादा अनुकूल है। वहां की अध्‍यक्षीय शासन व्‍यवस्‍था अमरीकी राष्‍ट्रपति को अंतरराष्‍ट्रीय मसलों पर अहम निर्णय लेने के सक्षम बनाता है।
वैश्विक मसलों पर अहम भूमिका
18 9 8 में स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध से लेकर अभी तक अमरीका ने हर अंतरराष्‍ट्रीय मसलों पर अहम भूमिका निभाने का काम किया है। प्रथम विश्‍व युद्ध, पूर्वी एशिया में अस्थिरता के दौर को समाप्‍त कराने और द्वितीय विश्‍वयुद्ध में तो उसने निर्णायक भूमिका निभाई। द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद अमरीका का दुनिया भर में हर मामले में विस्‍तार तेजी से हुआ। उसने ब्रेटन वुड्स सिस्टम के तहत दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था को एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया। शीत युद्ध के काल में उसने रूस के खिलाफ गैर युद्ध गठंधन नाटो को स्‍थापित किया। उसने साम्‍यवादी शासन को रोकने के क्रम में दुनिया भर में सैन्‍य ताकत का विस्‍तार किया। उसी का नतीजा है कि वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ गठजोड़ किया और अमरीकी हितों की रक्षा की।
अब चीन के साथ ट्रेड वार
अमरीकी राष्‍ट्रपति चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए चौतरफा घेरने में हुटा है। ताकि अमरीकी बादशाहत को आगे भी बरकरार रखा जा सके। इसके लिए अमरीका ने दक्षिण सागर में चीन को घेरने की कोशिश की है। उत्‍तर कोरिया को अपने वश करने के लिए युद्ध को भी न्‍योता देने से पीछे नहीं रहा। हालांकि युद्ध नहीं हुआ, पर अमरीका ने इसकी रूपरेखा तैयार कर ली थी। इतना ही नहीं उसने चीन को घेरने के लिए भारत के साथ रणनीतिक समझौता भी किया है। चीन के साथ ट्रंप ने ट्रेड वार की भी घोषणा कर दी है। चीनी उत्‍पादों पर अतिरिक्‍त शुल्‍क लगा दिया है। ट्रेड वार में भी अमरीका के जीत उम्‍मीद ज्‍यादा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ट्रेड वार में हमेशा उस देश को ज्‍यादा नुकसान होता है जिसके पक्ष में ट्रेड हो। अमरीका और चीन के बीच ट्रेड का संतुलन चीन के पक्ष में है।

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