अमरीका

सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता जरूरी : फ्रांस

भारत, ब्राजील,
जर्मनी और जापान संयुक्त राष्ट्र के जी-4 समूह के हिस्सा है, जो कि सुरक्षा परिषद
में सुधार की वकालत कर रहे हैं और स्थायी सदस्यता के लिए एक-दूसरे का समर्थन कर रहे
हैं

May 06, 2015 / 04:42 pm

जमील खान

UNSC

संयुक्त राष्ट्र। फ्रांस ने कहा है कि बदलते युग में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता बरकरार रखने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि सुरक्षा परिषद अपने स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाए और भारत को शामिल किया जाए। संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के स्थायी प्रतिनिधि फ्रांस्वा डिलैट्रे ने मंगलवार को कहा, फ्रांस सुरक्षा परिषद के स्थायी तथा अस्थायी सदस्यों की संख्या में विस्तार के पक्ष में है और जर्मनी तथा जापान का समर्थन करता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध की उनकी भूमिका के भार से मुक्त होने के पात्र हैं, लेकिन यह भारत, ब्राजील और अफ्रीका के प्रतिनिधित्व का भी समर्थन करता है।

सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में यह बात डिलैट्रे ने द्वितीय विश्वयुद्ध के 70 साल पूरा होने से संबंधित महासभा के सत्र के दौरान कही। सुरक्षा परिषद का सदस्य होने के नाते भारत – और जर्मनी, ब्राजील व जापान- का फ्रांस द्वारा समर्थन किया जाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि सितंबर में मनाई जाने वाली संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ से पहले महासभा के मौजूदा सत्र के दौरान बहुप्रतीक्षित सुधार के प्रयासों में नई गति आई है।

भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान संयुक्त राष्ट्र के जी-4 समूह के हिस्सा है, जो कि सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत कर रहे हैं और स्थायी सदस्यता के लिए एक-दूसरे का समर्थन कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद के पांच में से चार सदस्य फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका ने भी एक मंच पर भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है। यह संभवत: महासभा की बैठक में स्थायी सदस्यता को लेकर नई दिल्ली के प्रति दिखाया गया पहला प्रत्यक्ष समर्थन है।

सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर बल देते हुए डिलैट्रे ने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध से यह सीख मिली है कि हमारे कार्य की क्षमता हमारे संस्थान के औचित्य से जुड़ी होती है। इसलिए सुरक्षा परिषद में सुधार इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। “यह आवश्यक है, मैं कहूंगा बेहद महत्वपूर्ण है।””

संयुक्त राष्ट्र में भारत के उपस्थायी प्रतिनिधि भगवंत एस.बिश्नोई ने कहा, “जब हम द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति का स्मरण कर रहे हों, तो हमें वैश्विक शासन के संस्थान की स्थिति का मूल्यांकन करने की जरूरत है, जिसकी स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर हुई थी।

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